Search

नेत्रहीन सुबोदित व ऐनी मेरी होरो बने प्रेरणा: इंटर आर्ट्स में पाए 417 व 343 अंक

Ranchi : बहुबाजार स्थित सेंट पॉल्स कॉलेज के नेत्रहीन छात्र सुबोदित तरफदार और ऐनी मेरी होरो ने इंटरमीडिएट आर्ट्स की परीक्षा में शानदार प्रदर्शन कर यह साबित कर दिया है कि अगर संकल्प मजबूत हो, तो कोई भी शारीरिक बाधा सफलता के मार्ग में रोड़ा नहीं बन सकती.

Uploaded Image


सुबोदित ने इंटर की परीक्षा में 417 अंक प्राप्त कर प्रथम श्रेणी में सफलता हासिल की. हिंदी में 89, अंग्रेज़ी में 81, राजनीतिक विज्ञान में 83 और मानवशास्त्र में 84 अंक प्राप्त कर उन्होंने साबित किया कि उनकी प्रतिभा असाधारण है. सुबोदित संगीत के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं और वर्तमान में कोलकाता से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रहे हैं. सप्ताह में दो बार कोलकाता जाकर वे शास्त्रीय गायन की बारीकियां सीखते हैं. उनका सपना है कि एक दिन वे सफल संगीतज्ञ बनें और झारखंड के अन्य नेत्रहीन व दिव्यांग बच्चों को भी आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दें.


उनके पिता एक केबल ऑपरेटर हैं और माता गृहिणी हैं. सीमित संसाधनों के बावजूद माता-पिता ने उन्हें हरसंभव सहयोग दिया. सुबोदित ने नेत्रहीनों के विशेष विद्यालय से मैट्रिक में भी 90 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे.

Uploaded Image

दूसरी ओर, ऐनी मेरी होरो ने 343 अंक प्राप्त कर प्रथम श्रेणी से परीक्षा उत्तीर्ण की. ऐनी का बचपन सामान्य था, लेकिन वर्ष 2010 में अचानक सिरदर्द की शिकायत हुई. डॉक्टरों ने टाइफाइड और ब्रेन मलेरिया का निदान किया. इलाज के बावजूद उनकी दृष्टि हमेशा के लिए चली गई. इसके बाद परिवार ने उनका दाखिला बहुबाजार स्थित संत मिखाइल स्कूल में कराया, जहां से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की. इंटर की पढ़ाई सेंट पॉल्स हाई स्कूल से पूरी कर उन्होंने इस साल शानदार प्रदर्शन किया.


ऐनी की पारिवारिक स्थिति भी संघर्षपूर्ण रही है. उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. वे अपनी मां के साथ बहुबाजार के ट्राईगल लाइन इलाके में रहती हैं. मां हाट-बाजारों में साग-सब्जी बेचती हैं, जिससे घर का खर्च चलता है. ऐनी का सपना है कि वे बड़ी होकर शिक्षिका बनें और समाज के लिए योगदान दें.


सुबोदित और ऐनी मेरी होरो की सफलता सिर्फ परीक्षा में अच्छे अंकों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन लाखों छात्रों के लिए प्रेरणा है जो किसी न किसी चुनौती का सामना कर रहे हैं. इन दोनों छात्रों की कहानी यह सिद्ध करती है कि दिव्यांगता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति, मार्गदर्शन और मेहनत से उसे ताकत में बदला जा सकता है.

 

 

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp