- रेलवे की स्वच्छता व्यवस्था पर कैग की रिपोर्ट
- बायो-टॉयलेट्स, पानी की कमी और बजट उपयोग में कई खामियां उजागर
Lagatar Desk : भारतीय रेलवे में लंबी दूरी की ट्रेनों में सफाई और पानी की व्यवस्था को लेकर गंभीर लापरवाहियां बरती जा रही हैं. इस बाक का खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नई रिपोर्ट में हुआ है, जिसे उसने बुधवार को संसद के दोनों सदनों में पेश की है.
रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 में रेलवे को शौचालयों और वॉश बेसिन में पानी की कमी को लेकर 1,00,280 शिकायतें मिली हैं. इनमें से 33,937 यानी 33.84% शिकायतों का समाधान तय समय सीमा से देर में किया गया. यानी हर तीन में से एक शिकायत का समाधान समय पर नहीं हुआ.
STORY | Over 1 lakh complaints of water shortage in toilets of Indian Railways coaches in 2022-23: CAG
— Press Trust of India (@PTI_News) August 20, 2025
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रिपोर्ट में साफ-सफाई और स्वच्छता पर 2018-19 से 2022-23 तक के पांच वर्षों का ऑडिट किया गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि रेलवे को साफ-सफाई और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं पर और गंभीरता से काम करने की जरूरत है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टेशन पर यात्रियों की संख्या अधिक होने के कारण स्वच्छता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है. इससे न केवल स्वास्थ्य जोखिम कम होते हैं, बल्कि यात्रियों को सुखद और आरामदायक यात्रा का भी अनुभव होता है.
दो जोन यात्रियों का संतुष्टि स्तर 10% से कम
रिपोर्ट के अनुसार, लंबी दूरी की ट्रेनों में बायो-टॉयलेट्स की सफाई व्यवस्था को लेकर 2,426 यात्रियों की राय ली गई. पांच रेलवे जोनों में 50% से अधिक यात्री संतुष्ट नजर आएं. जबकि दो जोनों में संतुष्टि स्तर 10% से भी कम रहा. रिपोर्ट में साफ किया गया कि पानी की कमी इन शिकायतों का प्रमुख कारण रही.
पानी समस्या को लेकर 2017 में QWA शुरू
पानी की समस्या के समाधान के लिए रेलवे बोर्ड ने सितंबर 2017 में क्विक वाटरिंग अरेंजमेंट (QWA) की शुरुआत की थी. वर्तमान में 109 स्टेशनों में से 81 पर यह सुविधा चालू है. लेकिन 28 स्टेशनों पर QWA कार्यान्वयन में देरी हो रही है. देरी के प्रमुख कारणों में फंड की कमी, ठेकेदार की धीमी कार्य गति और काम के स्थगन को जिम्मेदार ठहराया गया है. कई स्थानों पर यह कार्य 2 से 4 वर्षों से लटका हुआ है.
स्वच्छता बजट और खर्च में असंतुलन
रिपोर्ट में बताया गया है कि रेलवे ने सफाई के लिए जो बजट तय किया था, उसका इस्तेमाल सभी जगह सही तरीके से नहीं हुआ. कुछ जोनों ने तय रकम से ज्यादा खर्च कर दिया. जबकि कई जगहों पर पूरा बजट भी खर्च नहीं हो पाया.
खास तौर पर लिनन (चादरें, कंबल आदि) और कोच की सफाई पर ज्यादा पैसा खर्च हुआ. कोविड-19 महामारी के समय कई जगहों पर सफाई का काम रोक दिया गया था, जिससे कुछ इलाकों में बजट का इस्तेमाल बहुत कम हुआ.
ACWPs की स्थिति भी चिंताजनक
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि रेलवे के 24 ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट्स (ACWPs) की जांच की गई. इनमें से 8 मशीनें खराब थीं या रिपेयर में लगी थीं. इसकी वजह से रेलवे को 1,32,060 कोचों को बाहर के ठेकेदारों से धुलवाना पड़ा, जिससे ज्यादा खर्च हुआ और समय भी बर्बाद हुआ.
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