Chainpur : जहां केंद्र और राज्य सरकारें आदिम जनजातियों के लिए अनेकों योजनाएं उनके घर तक पहुंचाने का दावा करती हैं, वहीं चैनपुर प्रखंड के कातिंग पंचायत स्थित ब्रह्मपुर जोबला पाठ की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है. इस सुदूरवर्ती क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं, विशेषकर सड़कों की घोर कमी के कारण, मरीजों और गर्भवती महिलाओं को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
जोबला पाठ तक पहुंचने के लिए कोई उचित सड़क नहीं है. कच्ची, कीचड़ भरी पगडंडी ही एकमात्र सहारा है, जिस पर पैदल चलना भी दूभर है. बारिश के मौसम में स्थिति और भी बदतर हो जाती है, जब पूरी मिट्टी गीली और फिसलन भरी हो जाती है. गांव में कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए, तो उसे कंधे पर उठाकर या पीठ पर लादकर ब्रह्मपुर तक पैदल लाना पड़ता है, जहां से आगे अस्पताल तक पहुंचने का कोई साधन मिल सके.
हाल ही में ऐसी ही एक हृदय विदारक घटना सामने आई, जिसमें आदिम जनजाति की गर्भवती महिला गुड़िया देवी पति सुरेंद्र कोरवा को प्रसव पीड़ा होने पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, चैनपुर ले जाना था. लेकिन 108 एम्बुलेंस जोबला पाठ तक पहुंचने में असमर्थ थी क्योंकि वहां जाने के लिए कोई रास्ता ही नहीं है. मजबूरन, एम्बुलेंस ब्रह्मपुर तक ही आ पाई. स्वास्थ्य सहिया ग्लोरिया लकड़ा ने इस भयावह स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जोबला पाठ तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है, सिर्फ पगडंडी के सहारे ही आना-जाना पड़ता है.
उन्होंने कहा कि अधिकांश गर्भवती महिलाओं को ऊपर पाठ से नीचे लाने में काफी परेशानी होती है. उन्हें स्वयं पैदल चलकर इतनी ऊंचाई तक जाना पड़ता है. रास्ते में न तो कोई पुल है और न ही कोई सुगम मार्ग; खेत की मेड़ों से होकर एक-एक परिवार तक पहुंचना पड़ता है. इस विकट परिस्थिति में, स्वास्थ्य सहिया ग्लोरिया लकड़ा, बीटीटी जीवनती कुमारी, और टाटा फाउंडेशन की मानसी मिंज एवं भारती सिंह के अथक सहयोग से गुड़िया देवी को चैनपुर लाया जा सका.
गुड़िया देवी के पति सुरेंद्र कोरवा ने अपनी पत्नी को अपने पीठ पर लादकर जोबला पाठ से ब्रह्मपुर तक पहुंचाया, जहां से एम्बुलेंस उन्हें चैनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जा सकी. यह घटना जोबला पाठ जैसे कई अन्य दूरस्थ आदिम जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं और आधारभूत संरचना की कमी की पोल खोलती है.
यह दर्शाता है कि सरकारी योजनाएं कागजों पर भले ही कितनी भी अच्छी क्यों न लगें, जमीनी स्तर पर उनकी पहुंच और प्रभावशीलता सुनिश्चित करना अभी भी एक बड़ी चुनौती है. इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आज भी एक बुनियादी सड़क जैसी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, जो उनके जीवन को सीधे प्रभावित करती हैं.
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