Ghatshila (East Singhbhum) : घाटशिला प्रखंड का चेंजोड़ा गांव अब ‘संताली संस्कृति के जीवंत संग्रहालय’ के रूप में पर्यटकों के लिए अपने द्वार खोल चुका है. यह पहल जमशेदपुर की सामाजिक संस्था कलामंदिर ने स्थानीय समुदाय की साझेदारी में साकार की है जो आदिवासी विरासत को नए रूप में जीवित करने का प्रयास है.
करीब 2.5 एकड़ में फैला यह हैरिटेज विलेज एक पारंपरिक संताली गांव का रूप प्रस्तुत करता है, जहां आने वाला हर व्यक्ति संताली जीवनशैली, लोककथाओं, संगीत, खानपान, त्योहारों और शासन व्यवस्था का अनुभव कर सकता है. मिट्टी की झोपड़ियां, लोककला से सजे भित्तिचित्र, रेस्टोरेंट, कॉन्फ्रेंस हॉल और सांस्कृतिक मंच इस गांव को खास बनाते हैं.
स्थानीय महिला लक्ष्मी हंसदा ने बताया कि वो छह वर्षों में 4,000 से अधिक पेड़ लगाकर इस क्षेत्र को फिर से हरा-भरा बनाया है. आज यहां पक्षी, मछलियां और कीट-पतंगे लौट आए हैं और खेती सालभर संभव हो पाती है.
गांव के चारों ओर महुआ, सागवान, जामुन, आम, कटहल और नीम जैसे वृक्ष लगे हैं. हर पेड़ पर उसका वैज्ञानिक और संताली नाम लिखा गया है ताकि आगंतुकों को प्रकृति और भाषा दोनों से जुड़ाव महसूस हो.
चेंजोड़ा अब ग्रामीण पर्यटन का नया केंद्र बन रहा है. यहां पारंपरिक झोपड़ी शैली के कॉटेज, सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइटें, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छ शौचालय जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं. पर्यटक यहां तीरंदाज़ी, पक्षी-दर्शन, फोटोग्राफी और जैव-विविधता शिविरों में भाग ले सकते हैं.भोजन में सोर्रे, लेटो, पीठा और साल के पत्तों में बने व्यंजन पर्यटकों के लिए उपस्थित होंगे. शाम को ‘आखरा’ में लोकनर्तक पारंपरिक संताली नृत्यों से माहौल जीवंत कर देंगे.
परियोजना की जड़ें 19वीं सदी के संताली विद्वान माझी रामदास टुडु की पांडुलिपि ‘खेलवाल बोंगशो धोरोमपुथी’ में हैं, जिसने संताली इतिहास को दर्ज किया था. कलामंदिर के संस्थापक अमिताभ घोष ने कहा कि टुडु जी ने यह सिखाया कि परंपरा केवल अतीत की धरोहर नहीं बल्कि भविष्य की राह भी दिखाती है.
गांव में पारंपरिक ‘मोरे होर’ परिषद प्रणाली का प्रदर्शन किया गया है, जिसमें माझी (मुखिया), जोग माझी और नायके (पुजारी) की भूमिकाओं को दर्शाया गया है. इस परियोजना से 100 से अधिक स्थानीय लोग सीधे रोजगार से जुड़े हैं- कलाकार, नर्तक, चित्रकार, माली और महिलाएं, सभी इस पहल के अभिन्न अंग हैं. स्थानीय नेतृत्वकर्ता भादो मुर्मु ने कहा यह सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि हमारी मेहनत और पहचान का प्रतीक है.
चेंजोड़ा हैरिटेज विलेज को अब आसपास के पर्यटन स्थलों बुरुडीह झील, रंकिणी मंदिर, धारागिरी जलप्रपात और विभूतिभूषण बंदोपाध्याय के घर से जोड़ने की योजना है. अमिताभ घोष ने कहा कि चेंजोड़ा हमें याद दिलाता है कि आदिवासी ज्ञान सिर्फ इतिहास नहीं बल्कि भविष्य की दिशा दिखाने वाला जीवंत स्रोत है.
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