Ranchi : झारखंड का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल रिम्स इन दिनों इलाज या चिकित्सा सेवाओं से कम, अंदरूनी टकराव और अदालती टिप्पणियों को लेकर ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है. एक तरफ अदालत रिम्स की व्यवस्थाओं को लेकर बार-बार सख्त टिप्पणी कर रहा है और इसमें सुधार लाने पर जोर दे रहा है.
वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य मंत्री और निदेशक के बीच प्रशासनिक टकराव गहराता जा रहा है. जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है. इस त्रिकोणीय लड़ाई की वजह से भर्ती और उपकरणों की खरीद अटकी है. वहीं बुनियादी सेवाएं भी ठप हो गई हैं.
मंत्री-निदेशक की तकरार
अप्रैल 2025 में सरकार ने RIMS निदेशक डॉ राजकुमार को हटाने का आदेश जारी किया था. प्रशासनिक अस्थिरता के बीच 18–19 अप्रैल 2025 को अंतरिम निदेशक के तौर पर डॉ शशिबाला सिंह की नियुक्ति की गई थी. लेकिन 28 अप्रैल को झारखंड हाई कोर्ट ने इस नियुक्ति पर रोक लगा दी और कहा कि बिना उचित प्रक्रिया के किसी को हटाना कलंकित करने वाला आदेश है.
सरकार का कहना था कि डॉ राजकुमार ने विभागीय निर्देशों का पालन नहीं किया, निर्धारित लक्ष्य पूरे नहीं किए और RIMS अधिनियम 2002 के अनुसार काम नहीं किया. आदेश में नियम 9(vi) के तहत तत्काल हटाने और तीन माह के वेतन–भत्ते का प्रावधान भी दर्ज था.
वहीं डॉ राजकुमार ने अदालत में कहा कि अस्पताल के लिए उपकरणों की खरीद और बड़े निर्माण कार्यों पर मंत्री की पूर्व–स्वीकृति की अनिवार्यता के कारण अस्पताल के कई महत्वपूर्ण कामकाज अटक गए. अदालत ने राज्य सरकार से इस निर्देश पर स्पष्टीकरण मांगा है.
अदालत की नाराजगी
सार्वजनिक हित याचिका में दंत, नर्सिंग और पैरामेडिकल विंग में वर्षों से पद खाली होने और आवश्यक उपकरणों की कमी की बात कही गई. अदालत ने निजी प्रैक्टिस करने वाले उन डॉक्टरों की बायोमेट्रिक उपस्थिति का विवरण भी मांगा जो NPA लेते हैं.
अदालत के स्पष्ट निर्देश
उपकरणों की खरीद और सिविल कार्यों के लिए 'सिंगल-विंडो' स्वीकृति प्रणाली विकसित की जाए, जिससे मंत्री, गवर्निंग बॉडी और निदेशक की भूमिकाएं स्पष्ट रूप से परिभाषित और समयबद्ध हों.
इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि ICU, MRI, डायलिसिस और रेडियोथेरेपी जैसी अहम चिकित्सा सेवाएं बाधित न हों.
इसके साथ ही NPA (Non-Practicing Allowance) लेने वाले चिकित्सकों की उपस्थिति और बाहरी प्रैक्टिस पर कड़ी निगरानी रखी जाए, ताकि मरीजों को प्राथमिकता मिल सके.
ये कदम अदालत की अपेक्षाओं के अनुरूप हैं और सियासी प्रशासनिक लड़ाई ऊपर उठकर मरीज केंद्रित स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं.
विपक्ष जैसे आमने-सामने मंत्री और निदेशक
मंत्री और निदेशक की तकरार के बीच नीतिगत निर्णय लेने में देरी होती है. जिसका खामियाजा आम मरीजों को भुगतना पड़ता है. उन्हें एमआरआई रिपोर्ट, ऑपरेशन स्लॉट, डायलिसिस जैसी जरूरी सेवाओं के लिए हफ्तों तक चक्कर लगाने पड़ते हैं.
रिम्स : इलाज का केंद्र या सियासी अखाड़ा?
इस समय रिम्स एक इलाज संस्थान कम, सियासी और न्यायिक अखाड़ा ज्यादा नजर आता है. तीन ध्रुव अदालत, मंत्री और निदेशक एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर खुद को सही और दूसरे को दोषी ठहराने में लगे हैं.
अदालत का ध्यान संरचनात्मक कमियों पर है और वह इसमें समय–बद्ध सुधार चाहती है. मंत्री पक्ष राजनीतिक उत्तरदायित्व और कथित अनुशासन बनाम प्रक्रियात्मक पारदर्शिता पर जोर देता है. निदेशक पक्ष संस्थागत स्वायत्तता, खरीद-प्रक्रिया और प्रशासनिक हस्तक्षेप के विरोध की बात करता है.
लेकिन इस रस्साकशी का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यही है कि मरीजों की पीड़ा सबसे ज्यादा अनसुनी और अदृश्य हो गई है. जब तक मरीजों को केंद्र में रखकर निर्णय नहीं लिए जाते, तब तक यह स्थिति बनी रहेगी.
HC के आदेश पर रिटायर्ड जस्टिस के निगरानी में रिम्स शासी परिषद (जीबी) की 60वीं बैठक 14 सितंबर से पहले होना है, रिम्स प्रशासन ने 10 से 14 सितंबर के बीच की तिथि निर्धारित करने का सुझाव जीबी के अध्यक्ष सह स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य सचिव को दिया गया है. अब फैसलों की रफ्तार और पारदर्शिता ही तय करेगी कि हालात सचमुच सुधरते हैं या नहीं.
Leave a Comment