Ranchi : झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने सेवानिवृत्त महिला लेक्चरर की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है.
कोर्ट ने कहा है कि बिना दोषसिद्धि के आपराधिक कार्यवाही का लंबित रहना पेंशन और ग्रेच्युटी या अन्य पेंशन लाभ रोकने का आधार नहीं हो सकता है. क्योंकि यह कर्मचारी के वैधानिक अधिकार है.
सेवानिवृत्ति लाभों की मांग को लेकर दायर की थी रिट याचिका
दरअसल याचिकाकर्ता शांति देवी को 1 नवंबर 1984 को बी.एन.जे. कॉलेज में अस्थायी आधार पर हिंदी व्याख्याता (लेक्चरर) के रूप में एक वर्ष के लिए नियुक्ति किया गया था. इसमें एक प्रावधान था कि उनकी सेवाएं बिना कारण बताए किसी भी समय समाप्त की जा सकती थीं.
शांति देवी ने 7 जनवरी 1985 को कॉलेज में कार्यभार ग्रहण किया. इसके बाद 8 फरवरी 2002 को उनका स्थानांतरण राम लखन सिंह यादव कॉलेज में हो गया, जहां उन्होंने 16 फरवरी 2002 को कार्यभार संभाला. फिर 7 नवंबर 2003 को उन्हें झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) का सदस्य नियुक्त किया गया.
2004 में उन्हें बिना वेतन के पांच वर्ष का असाधारण अवकाश प्रदान किया गया. इसके बाद शांति देवी को झारखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत रांची विश्वविद्यालय सेवा में अस्थायी रूप से शामिल कर लिया गया. जेपीएससी में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्होंने 7 नवंबर 2009 को आर.एल.एस.वाई. कॉलेज में दोबारा कार्यभार ग्रहण कर लिया.
2 जून 2011 को सतर्कता विभाग ने कुछ आपराधिक मामलों को लेकर प्रतिवादी को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी के अगले दिन यानी 3 जून को उन्हें निलंबित कर दिया गया था. हालांकि बाद में शांति देवी को जमानत मिल गई. जमानत मिलने पर 30 जनवरी 2014 में उनकी सेवा में बहाल कर दी गईं और वो फिर से ड्यूटी पर लौट आई.
लेकिन नैतिक पतन से संबंधित मामले में कार्यवाही लंबित रहने के कारण 2015 में दोबारा उनको निलंबित कर दिया गया. इसके बाद 18 दिसंबर 2018 में रांची विश्वविद्यालय ने झारखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 67 के तहत उन्हें अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने का फैसला किया.
25 जनवरी 2019 को शांति देवी को तीन महीने के वेतन के साथ सेवानिवृत्त कर दिया गया. भविष्य निधि (PF) का भुगतान 2020 में कर दिया गया. लेकिन पेंशन, ग्रेच्युटी और अवकाश नकदीकरण जैसे अन्य लाभ कई अभ्यावेदनों के बावजूद रोक दिए गए थे. इसके विरोध में शांति देवी ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की और सेवानिवृत्ति लाभों की मांग की.
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