Ranchi : आधुनिकता के दौर में जहां तालाब और जलाशय मिट्टी व रासायनिक रंगों से बने दीयों से प्रदूषित हो रहे हैं. वहीं झारखंड में पर्यावरण के प्रति नई सोच के तहत गोबर से बने दीए और मूर्तियां तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं.
मिट्टी के दीये जलने के बाद घुलनशील नहीं होते, जिससे तालाबों में कचरा और प्रदूषण बढ़ता है. लेकिन गोबर, चिकनी मिट्टी से बने ये विशेष दीये पूरी तरह इको-फ्रेंडली हैं. दीये में घी डालकर जलाने पर यह तालाब में तैरते हैं और घी खत्म होते ही धीरे-धीरे पानी में विलीन हो जाते हैं. इससे जलाशय की पवित्रता बनी रहती है और मछलियों के लिए यह प्राकृतिक भोजन का काम करता है.
गोबर के दीयों से बढ़ेगा पर्यावरण संतुलन
इन दीयों को बनाने का उद्देश्य है पर्यावरण संतुलन बनाए रखना, जलाशयों को प्रदूषण से बचाना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है. गोबर से तैयार दीये, मूर्तियां और सजावट की वस्तुएं 100% ऑर्गेनिक हैं और पानी में पूरी तरह घुल जाती हैं.
सदियों से पूजा और धार्मिक कार्यों में गोबर और मिट्टी का उपयोग होता आया है. अब झारखंड में शंकर, गणेश, शुभ-लाभ, ओम, सत्यमेव जयते जैसी मूर्तियां गोबर से बना रहे हैं. विभिन्न धर्मो की पूजा संबंधित आकृतियां भी सांचे में तैयार की जा रही हैं, ताकि यह परंपरा हर धर्म तक पहुंचे.
रेडिएशन से बचाएंगे गोबर के उत्पाद
विशेषज्ञों के अनुसार, गोबर से बने उत्पाद मोबाइल रेडिएशन को अवशोषित करने की क्षमता रखते हैं. इसलिए घरों में गोबर की मूर्तियां और सजावट सामग्री रखने से रेडिएशन के हानिकारक प्रभाव कम होते हैं और स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ता है.
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