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सीयूजे : क्षमता निर्माण कार्यक्रम ने प्रतिभागियों में जगाई शोध की जिज्ञासा

Ranchi: झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग तथा अर्थशास्त्र एवं विकास अध्ययन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित “सामाजिक विज्ञान में मात्रात्मक एवं गुणात्मक शोध विधियां” विषयक दो-सप्ताहिक आईसीएसएसआर-प्रायोजित क्षमता निर्माण कार्यक्रम (CBP) के नौवें दिन की शुरुआत उत्साहपूर्ण और चिंतनशील वातावरण में हुई. दिन की शुरुआत प्रार्थना और “आज का विचार” प्रस्तुत करने से हुई, जिसने प्रतिभागियों में नए सीखने के प्रति ऊर्जा भरी.

 

कार्यक्रम निदेशक प्रो. तपन कुमार बसन्तीआ एवं डॉ. संहिता सुचरिता ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और दिन के विशिष्ट वक्ताओं को सम्मानित करते हुए सत्रों की शुरुआत की.

 

मेटा-विश्लेषण पर सरल और प्रभावी मार्गदर्शन

दिन के अधिकांश सत्र एक्सएलआरआई, जमशेदपुर के प्रोडक्शन, ऑपरेशन्स एवं डिसीजन साइंसेज विभाग के सह प्राध्यापक डॉ. आलोक राज द्वारा लिए गए. अपने पहले सत्र “मात्रात्मक शोध पद्धति: मेटा-विश्लेषण” में उन्होंने बताया कि मेटा-विश्लेषण अलग-अलग शोध अध्ययनों के निष्कर्षों को जोड़कर अधिक ठोस और विश्वसनीय परिणाम देता है.

 

उन्होंने फॉरेस्ट प्लॉट, इफेक्ट साइज, पब्लिकेशन बायस, कोरिलेशन मैट्रिक्स तथा हेट्रोजेनिटी जैसी अवधारणाओं को सरल उदाहरणों से समझाया. साथ ही, PRISMA फ्रेमवर्क पर विस्तार से बताते हुए यह स्पष्ट किया कि व्यवस्थित साहित्य समीक्षा (Systematic Review) के लिए यह कितना जरूरी होता है.

 

R सॉफ्टवेयर और कैजुअल इन्फ्रेंस का व्यावहारिक प्रशिक्षण

सत्र के दूसरे चरण में डॉ. राज ने प्रतिभागियों को R सॉफ्टवेयर के व्यावहारिक उपयोग का प्रशिक्षण दिया—डेटा इम्पोर्ट, डेटा क्लीनिंग, सांख्यिकीय परीक्षण, ग्राफ निर्माण, रिग्रेशन आउटपुट आदि का लाइव प्रदर्शन किया.

 

उन्होंने कैजुअल इन्फ्रेंस की अवधारणाएं जैसे काउंटरफैक्चुअल, मैचिंग, इंस्ट्रूमेंटल वैरिएबल्स, रेग्रेशन डिस्कॉन्टिन्यूटी व डिफरेंस-इन-डिफरेंसेज (DID) को सरल शब्दों में समझाया. उन्होंने चेतावनी दी कि गलत मान्यताएं कारण-परक निष्कर्षों को भटका सकती हैं, इसलिए सावधानी और शोध-स्वच्छता बेहद आवश्यक है.

 

नैचुरलिस्टिक इंक्वायरी, सहभागी शोध और एथनोग्राफी की गहराई

दिन का तीसरा सत्र डॉ. निरंजन साहू, प्रोफेसर, ग्रामीण प्रबंधन विभाग, XISS रांची द्वारा लिया गया. उन्होंने बताया कि नैचुरलिस्टिक इंक्वायरी वास्तविक परिस्थितियों में बिना हस्तक्षेप के घटनाओं को समझने का माध्यम है. सहभागी शोध (Participatory Research) को उन्होंने एक सहयोगात्मक प्रक्रिया के रूप में वर्णित किया, जिसमें समुदाय स्वयं शोध की धुरी बनता है.

 

नृवंशविज्ञान (Ethnography) को उन्होंने संस्कृति, व्यवहार और सामाजिक संबंधों की गहन और दीर्घकालिक समझ विकसित करने की प्रक्रिया बताया. अपने फील्ड अनुभवों के उदाहरणों ने प्रतिभागियों को गुणात्मक शोध की वास्तविक दुनिया से जोड़ दिया.

 

पुस्तक लेखन और पुस्तक समीक्षा पर सारगर्भित कार्यशाला

अंतिम सत्र प्रो. श्रेया भट्टाचार्जी, प्रोफेसर एवं डीन, स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज, सीयूजे द्वारा संचालित था. उन्होंने शैक्षणिक पुस्तक लेखन की संरचना, शैली, नैतिकता और मौलिकता पर प्रकाश डाला.

 

पुस्तक समीक्षा कैसे लिखी जाए—तर्कों का मूल्यांकन, प्रमाणों की जांच, कमियों की पहचान और पुस्तक के समग्र योगदान का विश्लेषण—इन सभी पहलुओं को उन्होंने उदाहरणों के साथ समझाया. इस सत्र ने प्रतिभागियों को अपनी अकादमिक लेखन क्षमता को और निखारने का अवसर दिया.

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