Ranchi : झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूजे) के मानव विज्ञान और जनजातीय अध्ययन विभाग (DATS) द्वारा माल पहाड़िया जनजाति के सांस्कृतिक और पारिस्थितिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण के उद्देश्य से पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस पहल का मुख्य उद्देश्य इस जनजाति की विशिष्ट पारंपरिक ज्ञान प्रणाली को संरक्षित करना है, जो न केवल स्थानीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है.
कार्यक्रम की मुख्य संयोजक व शोध परियोजना की निदेशक प्रो. सुचेता सेन चौधरी ने बताया कि लगभग 2.25 लाख की आबादी वाली माल पहाड़िया जनजाति झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में निवास करती है. इनकी पारंपरिक जीवनशैली, जैव विविधता से जुड़ा ज्ञान और सांस्कृतिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए अमूल्य संपत्ति है, जिसे संरक्षित किया जाना आवश्यक है.
यह कार्यशाला भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) द्वारा प्रायोजित शोध परियोजना "झारखंड के माल पहाड़िया समुदाय का सांस्कृतिक-पारिस्थितिक ज्ञान: एक अध्ययन" के अंतर्गत आयोजित की गई. इसमें दुमका जिले के अमलागरिया, आसनपहाड़ी, कैराबनी और पाकुड़ जिले के बोड़ो पहाड़ गांव से कुल 54 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें 17 महिलाएं और 37 पुरुष शामिल थे.
सह-शोधकर्ता डॉ. एम. रामाकृष्णन ने बताया कि कार्यशाला में माल पहाड़िया समुदाय के पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान, औषधीय पौधों की पहचान, सांस्कृतिक प्रतीकों और जैविक-अजैविक संसाधनों की समझ पर गहन चर्चा की गई. प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा कर ज्ञान को प्रमाणिकता प्रदान की और इसके संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई.
कार्यक्रम में अमलागरिया के शिक्षक श्री श्यामलाल अहारी, संताल परगना आयुक्त कार्यालय के अधिकारी भादु देहरी, अमड़ापाड़ा के सेवानिवृत्त शिक्षक प्रेमलाल देहरी, बोड़ो पहाड़ के ग्राम प्रधान जनार्दन पहाड़िया सहित कई युवा प्रतिभागी उपस्थित थे.इस कार्यशाला का समन्वयन प्रो. सुचेता सेन चौधरी एवं डॉ. एम. रामाकृष्णन ने किया. परियोजना से जुड़ी टीम में सुनीता सोरेन, प्रियव्रत नाग और शोधार्थी बिसेसर सरेन ने विशेष सहयोग दिया. कार्यशाला के समापन पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया.
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