New Delhi : दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल में मौजूद संसद हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के संस्थापक मोहम्मद मकबूल भट्ट की कब्रें हटाने की मांग वाली याचिका दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनने से इनकार कर दिया है.
याचिका विश्व वैदिक सनातन संघ नामक संस्था ने दायर की थी. याचिका में मांग की गयी थी कि दोनों की कब्रों को वहां से हटाकर गुप्त स्थान पर स्थानांतरित कर दिया जाये. कोर्ट ने जब याचिका सुनने से मना कर दिया, तो याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली.
जान लें कि जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव की बेंच द्वारा याचिकाकर्ता से पूछा कि तिहाड़ जेल में दोनों की कब्रें होने से आपके किस मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है? किस नियम की अवहेलना की जा रही है? कोर्ट ने कहा, किसी की इच्छनुसार किसी भी जनहित याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकते.
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में दलील दी कि पब्लिक डोमेन में यह बात चर्चित है कि इनकी कम्युनिटी के कुछ लोग बाहर अपराध करते हैं. वे जब जेल जाते हैं तो इन दोनों की कब्रों पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. कहा कि यह आतंकियों का महिमा मंडन करना है. याचिका में आरोप लगाया गया था कि अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्रों की मौजूदगी ने तिहाड़ केंद्रीय जेल को कट्टरपंथी तीर्थस्थल में बदल दिया है.
कोर्ट ने इस दलील को दरकिनार करते हुए कहा, आप हमें सिर्फ इतना बताइए कि आपके किस मौलिक या संवैधानिक अधिकार का हनन हो रहा है? बेंच ने कहा कि आप जेल में दफनाने के खिलाफ हैं. यह मामला साल 2013 का है. हम 2025 में रह रहे हैं.
कोर्ट ने कहा कि किसी के अंतिम संस्कार का सम्मान किया जाना चाहिए. सरकार ने इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए जेल में दफनाने का फैसला किया. कहा कि कब्र अधिकारियों की सहमति से बनाई गयी है, जेल कोई सार्वजनिक स्थान नहीं है.
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