Ranchi : दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने झारखंड के इतिहास में अमिट छाप छोड़ी है. वर्षों तक चले झारखंड आंदोलन को सजीव रखते हुए उन्होंने राज्य निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 4 अगस्त को उनका दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया. 5 अगस्त को उनका अंतिम संस्कार रामगढ़ के नेमरा गांव में संपन्न हुआ.
शिबू सोरेन के निधन से आदिवासी समुदाय को गहरा आघात पहुंचा है. वे न केवल झारखंड के, बल्कि देश के भी एक बड़े नेता और आदिवासी समाज के संरक्षक रहे हैं. वे अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार और संघर्ष हमेशा जीवित रहेंगे.बुधवार को मोरहाबादी स्थित बापू वाटिका के सामने आदिवासी मूलवासी संघ के बैनर तले आयोजित श्रद्धांजलि सभा में यही भावनाएं व्यक्त की गईं. सभा की शुरुआत एक मिनट के मौन के साथ गुरुजी को श्रद्धांजलि अर्पित कर की गई.
स्मारक स्थल की रखी गई मांग
आदिवासी मूलवासी मंच के अध्यक्ष सूरज टोप्पो ने कहा कि दिशोम गुरु, पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता शिबू सोरेन का कद और व्यक्तित्व बहुत ऊंचा था. उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में इतिहास के पन्नों में दर्ज किया जाएगा.
उनकी जीवन यात्रा हर वर्ग के लोगों के लिए प्रेरणादायक है. इसलिए जरूरी है कि उनके जन्म से लेकर निधन तक के सफर को लोग जानें और उससे सीखें. उन्होंने मांग की कि मोरहाबादी स्थित दादा-दादी पार्क में गुरुजी की स्मृति में एक स्मारक स्थल बनाया जाए, ताकि स्कूली और कॉलेज के छात्र-छात्राएं वहां आकर उनके जीवन से प्रेरणा ले सकें.
सभा में ये लोग रहे शामिल
इस अवसर पर अंतु तिर्की, सूरज टोप्पो, मोहन तिर्की (कोषाध्यक्ष), डब्लू मुंडा, अमित मुंडा, अनिल उरांव, सुरेश मिर्धा, जोसना केरकेट्टा, राधा हेमरोम, नेहा हेमरोम सहित कई अन्य लोग उपस्थित थे.
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