Ranchi: राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने कहा है कि लोकभवन का द्वार राज्य के हर नागरिक के लिए सदैव खुला है. जनजातीय भाषाओं, लोक कलाओं और सांस्कृतिक आयोजनों के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए भी लोकभवन सदैव सहयोगी रहेगा. साथ ही लोकभवन आमजनों के हितों के संरक्षक की भूमिका में रहेगा.
राज्यपाल सोमवार को जमशेदपुर में आयोजित ओलचिकी लिपि के शताब्दी समारोह में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि भाषा और संस्कृति सिर्फ अतीत की धरोहर नहीं बल्कि भविष्य की दिशा निर्धारित करने वाली शक्ति है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश विकसित भारत 2047 के समावेशी विकास की ओर अग्रसर है. यह शताब्दी समारोह भी इसी समावेशी विकास की भावना का प्रतीक है.
यह महोत्सव लोकसंस्कृति और सामुदायिक एकता का उत्सव
राज्यपाल ने कहा कि यह महोत्सव लोकसंस्कृति और सामुदायिक एकता का उत्सव है. पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा 2003 में संताली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया. उस वक्त मैं अटल मंत्रिपरिषद का सदस्य भी था. ओलचिकी लिपि के सृजन में पंडित रघुनाथ मुर्मू का अतुलनीय योगदान रहा है. ओलचिकी लिपि सिर्फ लिपि ही नहीं बल्कि संथाली समाज की वैचारिक चेतना, सांस्कृतिक गरिमा और पहचान का प्रतीक है. इस लिपि ने शिक्षा, साहित्य और शोध के क्षेत्र में सुदृढ़ आधार प्रदान किया है.
राष्ट्रपति के आगमन से पूरे राज्य में उत्साह का वातावरण
राज्यपाल ने कहा कि ओलचिकी लिपि शताब्दी समारोह का आयोजन सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि जनजातीय समाज की भाषा, संस्कृति व अस्मिता का सजीव उत्सव है. राष्ट्रपति के आगमन से संपूर्ण राज्य में हर्ष और उत्सव का वातावरण है.
राष्ट्रपति सामाजिक न्याय, जनजातीय उत्थान और महिला उत्थान की जीवंत प्रतीक भी हैं. उनके आने से यह समारोह ऐतिहासिक और प्रेरणादायी बन गया है. ये वही भूमि है, जहां जमशेदजी टाटा ने औद्योगिक विकास के साथ सामाजिक समरसता की मजबूत नींव रखी थी.
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