Ranchi: अप्रैल 2024 का महीना था. 19 अप्रैल 2024 को झारखंड पुलिस मुख्यालय को एक गुमनाम पत्र मिलता है. पत्र डीजीपी को संबोधित था. पत्र पर डीजीपी ने लिखाः IG (Provision), what is the matter. put up with your observation. यानी, आईजी प्रोविजन, अपने मंतव्य के साथ फाईल भेजें. इस पत्र में पुलिस मुख्यालय में सुरक्षा सामग्रियों, कंप्यूटर, फर्नीचर आदिल की खरीद में गड़बड़ियों के लेकर कुल 9 आरोप लगाए गए थे. पुलिस मुख्यालय के अफसर पत्र के तथ्यों की जांच करने के बदले पत्र लिखने वाले का पता लगाने में ज्यादा दिलचस्पी ली.
पत्र में लगाये गए आरोपों में यह कहा गया था कि पिछले तीन सालों में पुलिस मुख्यालय के स्तर से जितने भी टेंडर किए गए, उनमें अधिकांश कुछ खास कंपनियों को ही मिला. जिनमें प्रमुख नाम अरिहंत ट्रेडिंग, कापरी कॉप, लाइफ लाईन और जेसी माइकल इनकारपोरेशन है. इन तीनों कंपनियों को ही सुरक्षा उपकरणों की सप्लाई का टेंडर दिया गया. तीन कंपनियों के अलावा एक और कंपनी है, जिसका नाम जीएस इंटरप्राइजेज है. जिसे टायर सप्लाई का ऑर्डर दिया गया.
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पत्र में यह भी लिखा था कि फर्नीचर, टेबल, कंप्यूटर व लैपटॉप की खरीद में भी बड़ी गड़बड़ी की गई है. वर्ष 2010 के मॉडल का कंप्यूटर सालों बाद झारखंड पुलिस को बेचा गया. वह भी नए मॉडल के कंप्यूटरों की कीमत पर.
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया था कि एक व्यक्ति प्रदीप जैन हैं, जो कई कंपनियों के काम को देखते हैं. पुलिस मुख्यालय के फाइलों को पढ़ने से यह भी पता चलता है कि प्रदीप जैन ही दो-दो कंपनियों के लिए पुलिस मुख्यालय के अफसरो से मिलते थे. अरहिंत ट्रेडिंग और कापरी कॉप के लिए. पत्र में यह सवाल उठाया गया था कि आखिर यह कैसे संभव है कि तीन कंपनियां ही टेंडर में सफल हो पाती हैं, जबकि दर्जन भर से अधिक कंपनियां टेंडर में शामिल होते है.
पत्र में अनुरोध किया गया था कि तथ्यों की जांच करने से घपलों के बारे में पता लगाया जा सकता है. लेकिन पुलिस मुख्यालय के अफसरों ने तथ्यों की जांच नहीं की. उल्टे इस बात की जांच होने लगी कि पत्र भेजा किसने. पत्र डोरंडा पोस्ट ऑफिस से पोस्ट किया गया था. मुख्यालय के एक अफसर ने डोरंडा पोस्ट ऑफिस का सीसीटीवी फुटेज तक मंगा लिया. हालांकि यह पता नहीं चल पाया कि पोस्ट किसने किया था.
पत्र के 3रा पारा में लिखा है- फर्नीचर खरीद से जुड़े टेंडर को चेक किया जा सकता है. सारे टेंडर सिर्फ फर्म को ही मिला. आखिर यह कैसे संभव है कि तीन सालों में फर्नीचर के जितने भी टेंडर हुए, वह सभी एक ही कंपनी को मिलता चला गया.
इस तथ्य को लेकर एक तथ्य अचरज में डालने वाला है. गुमनाम पत्रों पर कार्रवाई ना करने की परंपरा रही है, हालांकि कई बार गुमनाम पत्र में स्पेसफिक तथ्य रहने पर आरोपों की जांच भी हुई है और घोटालाों का पर्दाफाश भी हुआ है. लेकिन गुमनाम पत्रों के तथ्यों की जांच करने के बदले पत्र लिखने वाले को सबक सिखाने के लिए उसके बारे में ही पता लगाने में दिलचस्पी लेना आश्चर्यजनक घटना है.