खास बातें
- झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य है जहां एक भी फॉरेस्टर नहीं
- फॉरेस्ट गार्ड के 60 प्रतिशत पद खाली
- रेंज ऑफिसर के 90 प्रतिशत पद खाली
- डीएफओ से सीएफ में प्रोन्नित नहीं
- पांच अधिकारी दो साल से डीएफओ बनने के इंतजार में
Ranchi: चार आइएफएस अफसर ट्रेनिंग पूरा करने के बाद दो साल से पोस्टिंग के इंतजार में बैठे हैं. प्रोन्नित के बदले अपने ही वेतनमान में कंटर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (सीएफ) का अतिरिक्त प्रभार देने की वजह से कई डीएफओ, सीएफ के रूप में खुद के ही बॉस बन गये हैं.
झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां निचले स्तर पर कर्मचारियों की भारी कमी है. राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का कीब एक तिहाई वन है. लेकिन फॉरेस्ट गार्ड के 60 प्रतिशत पद खाली है. फॉरेस्टर एक भी नहीं है. कहीं-कहीं फॉरेस्ट गार्ड को ही फॉरेस्टर का अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया है.
रेंज ऑफिसर का 90 प्रतिशत पद खाली है.
वर्ष 2024 में कुछ रेंज ऑफिसर को सेवा विस्तार का लाभ दिया गया. बाकी बचे रेंज ऑफिसर जल्द ही रिटायर होने वाले हैं. राज्य में डीएफओ से सीएफ के पद पर प्रोन्नति भी पिछले दो साल से बंद है. 2024-25 के बीच प्रोन्नित समिति की बैठकें हुईं.
लेकिन इन बैठकों में सिर्फ सीएफ से सीसीएफ और सीसीएफ से एपीसीसीएफ के पद पर प्रोन्नित के मामले में विचार किया गया. डीएफओ से सीएफ के पद प्रोन्नित के लिए समिति की कोई बैठक नहीं हुई. इसकी वजह से सीएफ को खाली पदों पर डीएफओ को सीएफ का अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया है. इससे कुछ डीएफओ, सीएफ के रूप में अपने ही बॉस बन गये हैं.
इस तरह के मामलों में सबा अहमद का नाम बतौर उदाहरण पेश किया जाता है. वह जमशेदपुर, दलमा वाइल्ड लाईफ और सरायकेला के डीएफओ हैं. इसके अलावा वह जमशेदपुर और चाईबासा सर्किल के सीएफ के अतिरिक्त प्रभार में हैं. यानी वह अकेले ही पांच पदों के प्रभार में हैं.
वह तीन जगह डीएफओ और दो जगह के सीएफ हैं. इस तरह वह डीएफओ के रूप में अपने द्वारा किये गये काम को खुद ही सीएफ के रूप में सही करार देते हैं. सरकार द्वारा डीएफओ से सीएफ के पद पर प्रोन्नति नहीं देने और एक ही अधिकारी को कई जगह का डीएफओ बनाये रखने की वजह से पांच आइएफएस अधिकारी पिछले दो साल से पदस्थापन की प्रतिक्षा में बैठे हैं. उन्हें अब तक डीएफओ के पद पर पदस्थापित नहीं किया गया है.
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