Lagatar Desk : शिक्षा जगत से बुरी खबर सामने आ रही है. रांची यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी, शिक्षाविद और वरिष्ठ पत्रकार प्रो. डॉ वेद प्रकाश शरण का निधन हो गया है. 80 वर्षीय वेद प्रकाश ने बुधवार तड़के तीन बजे रांची के क्यूरेस्टा अस्पताल में अंतिम सांस ली.
जानकारी के अनुसार, वेद प्रकाश को किडनी संबंधी बीमारी थी और लंबे समय से उनका इलाज चल रहा था. पूर्व वीसी के निधन की खबर से पत्रकारिता, शिक्षा और राजनीति गलियारे में शोक की लहर दौड़ गई है.
मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने शोक जताया
प्रो. वेद प्रकाश के निधन पर ग्रामीण विकास मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने शोक व्यक्त किया है. उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर लिखा कि वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षाविद् और रांची विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो–वाइस चांसलर प्रो. डॉ. वेद प्रकाश शरण के निधन का समाचार अत्यंत दुखद है. पत्रकारिता, शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा. ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और शोकाकुल परिवार को इस अपूरणीय क्षति को सहने की शक्ति दें. विनम्र श्रद्धांजलि.
वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षाविद् और रांची विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो–वाइस चांसलर प्रो. डॉ. वेद प्रकाश शरण के निधन का समाचार अत्यंत दुःखद है। पत्रकारिता, शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
— Dipika Pandey Singh (@DipikaPS) December 25, 2025
ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और शोकाकुल परिवार को इस अपूरणीय… pic.twitter.com/LwYnZFVMy8
शिक्षा, पत्रकारिता और राजनीति में डॉ. वेद का योगदान अविस्मरणीय
प्रो. डॉ. वेद प्रकाश शरण का शैक्षणिक जीवन अत्यंत समृद्ध रहा. उन्होंने रांची विश्वविद्यालय में प्रो वीसी के रूप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई. इससे पहले वे सेंट जेवियर्स कॉलेज, रांची में पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के एचओडी थे. इसके साथ ही उन्होंने लंबे समय तक कॉलेज के पत्रकारिता विभाग के निदेशक के रूप में भी सेवाएं दीं.
पत्रकारिता के क्षेत्र में भी प्रो. शरण का योगदान उल्लेखनीय रहा. उन्होंने तीन दशक से अधिक समय तक सक्रिय पत्रकारिता की और लंबे अरसे तक प्रतिष्ठित अखबार द स्टेट्समैन से जुड़े रहे. डॉ वेद प्रकाश शरण रांची प्रेस क्लब के संस्थापक संयुक्त सचिव भी रह चुके हैं.
प्रो. शरण ने राजनीतिक क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका निभाई और कांग्रेस पार्टी की झारखंड प्रदेश इकाई के पूर्व मुख्य प्रवक्ता के रूप में कार्य किया. उनके निधन को झारखंड के बौद्धिक, शैक्षणिक और पत्रकारिता जगत के लिए अपूरणीय क्षति माना जा रहा है.
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