Ranchi : झारखंड जनजातीय महोत्सव 2022 के अवसर पर जनजातीय शोध संस्थान मोरहाबादी में आयोजित ट्राइबल हिस्ट्री सेमिनार के दूसरे दिन सत्र का आरंभ डॉ विकास कुमार ने किया. उन्होंने संथाल हिस्ट्री और खेरवार आंदोलन के बारे में बताया. डॉ अंजु ओसिमा टोप्पो ने रीराइटिंग इंडिजेनस हिस्ट्री के बारे में जानकारी देते हुए आदिवासियों के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आदिवासियों से जुड़ी जानकारियां साझा की. प्रो विरजिनियस खाखा ने आदिवासी समाज के विभिन्न समुदायों जैसे मुंडा, हो, उरांव, संथाली, खाड़िया आदि के बारे में विस्तार से बताया. सामाजिक, सांस्कृतिक परिदृश्य में आदिवासियों की पहचान की व्याख्या की. आदिवासियों के उत्थान के लिए झारखंड में काम कर रही विभिन्न संस्थाओं की भूमिका के बारे में भी चर्चा की. प्रो जोसेफ बाड़ा ने ट्राइबल हिस्ट्री आफ इंडिया के बारे में जानकारी दी.
हजारीबाग की कोहबर कलाकृति के बारे में चर्चा
रूबी कुमारी ने झारखंड की आदिवासी कला के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि झारखंड सांस्कृतिक विभिन्नता से भरा हुआ है. पाषाण युग के उपकरण की खोज हजारीबाग जिले में और कुल्हाड़ी और भाला का सिरा चाईबासा क्षेत्र में पाए जाते हैं. 10000 से 30000 साल पुराने शैल चित्र, सती पहाड़ियों की गुफाओं में चित्र और अन्य प्राचीन संकेतक पाए जाते हैं. उन्होंने हजारीबाग की कोहबर कलाकृति के बारे में भी चर्चा की. पुरुलिया के सहदेव कर्माकर ने पुरुलिया जिले की संथाल और बिरहोर जनजाति के कलात्मक एवं सांस्कृतिक प्रयास के बारे में विस्तार से जानकारी दी. सेमिनार में रोज उरांव, अंजू कुमारी, रिया कुमार गुप्ता, तृष्णा तरूण, डॉ संजय बारा एवं डॉ अंजना सिंह ने अपने विचार साझा किए.
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ट्राइबल लिटरेचर पर सेमिनार
सेमिनार के दूसरे दिन आदिवासी समाज के साहित्य के भाषा विकास, प्रयोग एवं प्रभाव विषय पर वक्ताओं ने अपने विचार साझा किए. आधुनिक आदिवासी साहित्य की प्रगति के बारे में महाराष्ट्र से आए साहित्यकार लक्ष्मण एन गायकवाड ने कहा कि जिस राज्य में जो भी आदिवासी भाषा बोली जाती है, उसकी लिपि को स्वीकार कर लिया जाए, तो आदिवासी भाषाओं की समस्या एक हद तक समाप्त हो जाएगी. उन्होंने आदिवासी भाषा के आधुनिकीकरण पर कहा कि जो भी आदिवासी परिवार हैं, वे अपनी भाषा के साथ अंग्रेजी भाषा को भी दूसरी भाषा के रूप में अवश्य पढ़ लें, जिससे वे अपनी संस्कृति, अपने विचार, अपने साहित्य का विश्व स्तर पर साझा कर सकेंगे. निर्मला पुतुल ने कहा कि कितनी विडंबना है कि आज आदिवासी समाज के साहित्य के लिए हमें दूसरी भाषाओं की लिपि पर आश्रित रहना पड़ता है. आज झारखंड में कई आदिवासी भाषाओं की पढ़ाई शुरू हो गई है, लेकिन अभी भी हमें इसके लिए संयुक्त रूप से काम करना होगा. इस अवसर पर विलुप्त होती जा रही आदिवासी भाषाओं के बारे में भी जिक्र किया गया. प्रवक्ता डॉ अशोक प्रियदर्शी ने कहा कि भाषा एक पूरी संस्कृति, समाज की पहचान होती है. यदि यह विलुप्त हो रही है इसका मतलब है कि एक समाज अपनी पूरी संस्कृति के साथ विलुप्त हो रहा है. इस अवसर पर कई राज्यों से आए स्कॉलरों एवं विशेषज्ञों ने अपने अध्ययन को रखा.
ट्राइबल फिलॉस्फी पर सेमिनार
ट्राइबल फिलॉस्फी सेमिनार के दूसरे दिन डॉ. रोशन प्रवीन टोप्पो, डॉ. गणेश मांझी, डॉ. निकोलस लकड़ा ने आदिवासी ज्ञान प्रणाली के बारे में जानकारी दी . वहीं मंझरी उरांव ने जनजातीय दर्शन के संदर्भ में बताया कि किस प्रकार समाज में अभी भी जनजातियों के दार्शनिक विचारों को महत्व नहीं दिया जाता है. डॉ. राजेश ने पिठौरा के संदर्भ में जीवन दृष्टि के अपने अध्ययन को साझा किया. उन्होंने पिठौरा के आदिवासी समाज के धार्मिक अनुष्ठान के बारे में अपने अनुभवों को बताया. इस ट्राइबल फिलॉस्पी सेमिनार में बरनाड टोप्पो, गुणजाल इकीर मुंडा, अरविंद भगत एवं डॉ संजय बोस मलिक ने अपने विचार रखे.
ट्राइबल एंथ्रोपोलॉजी पर सेमिनार
मानव के विकास में जनजातियों के महत्व को बताते हुए सेमिनार के दूसरे दिन कुल चार सेशन किये गए. पहले सेशन में आदिवासी समाज के समसामयिक मुद्दों पर विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे. डॉ मनीष चंद्रा टुडू ने मानव के विकास में जनजातीय दर्शन के महत्व को बताया. उन्होंने झारखंड की संथाल जनजाति के बारे में बताया. उनके रहन सहन, उनके विकास आदि विषयों पर जानकारी दी एवं उनके उत्थान में आ रही समस्याओं से अवगत कराया. आदिवासी घरेलू कामगार महिलाओं के प्रवास की अवधारणा, उनके कारण और उनके प्रवास से होने वाली दिक्कतों की ओर ध्यान आकर्षित किया. दूसरे सेशन का मुख्य विषय आदिवासी समाज के ब्रह्मांड के ज्ञान और विश्व दृष्टिकोण के बारे में था. इस विषय पर डॉ इम्मैनुएल वर्टे ने उत्तर पूर्वी भारत की मिजो जनजाति के बारे में अपने अध्ययन को साझा किया. डॉ अभय सागर मिंज ओरांव जाति के सरना से संबंधित विश्वास और महत्व पर चर्चा की. तीसरे एवं चौथे सेशन में आदिवासी समाज से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर रिसर्च स्कॉलरों ने अपने-अपने अध्ययन से संबंधित जानकारियों को साझा किया.
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