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जमशेदपुर : ई-कचरे ने 10 साल में 3 गुना बढ़ाया वायु प्रदूषण, कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों का भी बन रहा कारण

Jamshedpur (Anand Mishra) : भारत में ई-कचरे के कारण वायु प्रदूषण का स्तर पिछले 10 साल में तीन गुना बढ़ गया है. इसके कम होने की संभावना फिलहाल नजर नहीं आ रही है. इसका खुलासा जमशेदपुर के बर्मामाइंस स्थित राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमएल) की एक रिपोर्ट से हुआ है. बताया गया है कि यह कैंसर व अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है. इस कचरे को न नदी या समुद्र में बहा सकते हैं और न ही जमीन में दबा सकते हैं. इसे जला भी नहीं सकते, क्योंकि इसके जलने पर जहरीली गैस निकलती है, जिससे वायु प्रदूषण होता है. इस तरह हर साल करोड़ों टन ई-कचरा जमीन पर पड़ा रहता है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता रहता है. इसे भी पढ़ें : सुभाष">https://lagatar.in/people-came-on-the-road-to-stop-ranchi-in-protest-against-subhash-munda-murder-case/">सुभाष

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ई-कचरे से निकलने वाले पदार्थ जहरीले और पर्यावरण व जीवन के लिए नुकसानदेह

इसके अलावा ई-कचरे से रिसाइक्लिंग के बाद आर्सेनिक, बेरियम, कोबाल्ट, निकेल, क्रोमियम, कैडमियम, जस्ता जैसे जहरीले पदार्थ निकलते हैं, जो अगर जमीन के भीतर या बाहर यो ही छोड़ दिये जाएं तो पर्यावरण और जीवन को इतना नुकसान पहुंचा सकते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. इतने जहरीले ई-कचरे को ठिकाने लगाने की भी हमारे देश में कोई सुनिश्चित वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं है. इसे भी पढ़ें : मणिपुर">https://lagatar.in/manipur-violence-opposition-mps-reach-parliament-wearing-black-dress-ruckus/">मणिपुर

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उत्पादक व ग्राहक को नियम की जानकारी नहीं

रिपोर्ट के अनुसार यूरोप में जब यह खतरा बढ़ने लगा, तब वहां की सरकार ने एक कानून बनाया कि ई-कचरा हर हाल में उत्पादक कंपनी को वापस लेना होगा और उसके एवज में ग्राहक को उचित मूल्य चुकाना होगा. सरकार ने ई-कचरे के डिस्पोजल की जिम्मेदारी उत्पादक पर डाल दी. भारत में भी इस तरह का कानून है, लेकिन इसकी जानकारी न उत्पादक के पास है, न ग्राहक के पास. जानकारी के अभाव में यह तय कर पाना मुश्किल होता जाता है कि ई-कचरे का डिस्पोजल किसे करना है. भारत में ई-कचरे को डंप करके नष्ट करने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है, जबकि विदेशों में ई-कचरे के डिस्पोजल के लिए वैज्ञानिक व्यवस्था सुनिश्चित की गई है. विदेशों में कोई ई-कचरा कहीं भी नहीं फेंका जा सकता है और न समुद्र में डाल जा सकता है. ऐसा करने पर कड़ी सजा का प्रावधान है. इसलिये वहां लोग खराब टीवी उस कंपनी को दे देते हैं, जो ई-कचरे को डिस्पोज करती है. इसे भी पढ़ें : रांची:">https://lagatar.in/ranchi-charkudihs-poem-on-second-place-in-the-country-in-ugc-net/">रांची:

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भारत सरकार ने वर्ष 2011 में बनाया था नियम

भारत सरकार ने सन 2011 में ई-कचरे के बढ़ते खतरे के मद्देनजर ई-कचरे के मैनेजमेंट और हैंडलिंग के लिये नियम बनाए और उन्हें लागू भी किया, लेकिन नियमों के पालन में सख्ती न बरते जाने के कारण किसी ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया. नतीजतन ई-कचरा यत्र-तत्र सर्वत्र फेंका जा रहा है. इसे भी पढ़ें : जमशेदपुर">https://lagatar.in/jamshedpur-two-dengue-patients-found-in-the-district-45-confirmed-so-far-in-july/">जमशेदपुर

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एक टन ई-कचरे से निकल सकता है 350 ग्राम सोना

भारत में ई-कचरा डिस्पोजल की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है। यह खतरा अभी भी स्टोर्स या घरों के अंधेरे में कैद रहता है। ई-कचरे के बढ़ते संकट को देखते हुए झारखण्ड के जमशेदपुर स्थित राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला के धातु निष्कर्षण विभाग ने ई-कचरे में छुपे सोने को खोजने की सस्ती तकनीक खोज ली है। इसके माध्यम से एक टन ई-कचरे से 350 ग्राम सोना निकाला जा सकता है. इसे भी पढ़ें : चाईबासा">https://lagatar.in/chaibasa-naxalites-do-posterity-in-sonua-oppose-setting-up-of-crpf-camp/">चाईबासा

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क्या कहते हैं पर्यावरणविद व विशेषज्ञ

पर्यावरणविदों का कहना है कि विदेशों की तुलना में भारत अभी सामान्य कचरा प्रबन्धन के मामले में बहुत पीछे है. आंकड़े बताते हैं कि भारत सरकार हर साल 60 लाख टन ई-कचरा आयात करती है. कई बार हमने जो इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद आयात किये, वे बाद में कूड़ा साबित हुए. नतीजा यह हुआ कि इस कचरे को ठिकाने लगाने में ही कम्पनियों को खासा खर्च करना पड़ा. इसे भी पढ़ें : सावधान!">https://lagatar.in/cyber-criminals-asking-for-money-in-the-name-of-officials-through-fake-emails-of-cbi/">सावधान!

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भारत में ई-कचरा उत्पादन और रीसाइक्लिंग 

इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से निकलने वाला अपशिष्ट : वज़न (मीट्रिक टन)
  • घरेलू उत्पादन : 332979
  • आयात : 50000
  • कुल : 382979
  • वास्तविक पुनर्नवीनीकरण : 190000
 

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