Lagatar desk : मशहूर गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर एक बार फिर अपने बेबाक बयान को लेकर सुर्खियों में हैं. हाल ही में एक कार्यक्रम में उन्होंने भारतीय फिल्मों की सेंसरशिप पर गंभीर चिंता जाहिर की है. अख्तर ने दो टूक कहा कि आज जहां समाज की हकीकत दिखाने वाली फिल्मों को सेंसर किया जाता है, वहीं अश्लीलता से भरपूर कंटेंट को आसानी से मंजूरी मिल जाती है.
खराब दर्शक ही खराब फिल्मों को बनाते हैं हिट
जावेद अख्तर ने अनंतरंग 2025 कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए कहा -इस देश में अश्लीलता को मंजूरी मिल जाती है. उन्हें पता ही नहीं कि ये गलत मूल्य हैं, एक पुरुषवादी सोच है जो महिलाओं को अपमानित करती है. वहीं, जो फिल्में समाज को आईना दिखाती हैं, वे सेंसर की शिकार बनती हैं.अख्तर ने आगे कहा कि जब तक दर्शकों का नजरिया नहीं बदलेगा, तब तक इस तरह की फिल्में बनती और सफल होती रहेंगी.
फिल्में समाज की खिड़की हैं
अख्तर ने फिल्मों को समाज का प्रतिबिंब बताते हुए कहा -फिल्म समाज की एक खिड़की होती है, जिससे आप झांक सकते हैं. लेकिन खिड़की बंद कर देने से सच्चाई नहीं छुपती. अगर पुरुषों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो जाए, तो ऐसी फिल्में बनेंगी ही नहीं, और अगर बन भी गईं तो वे सफल नहीं होंगी.
दोहरे अर्थ वाले गाने मेरी सोच के खिलाफ हैं
जावेद अख्तर ने सिनेमा में बढ़ती अश्लीलता और दोहरे अर्थ वाले गानों पर भी नाराजगी जताई. उन्होंने कहा -80 के दशक में दोहरे अर्थ वाले गानों का चलन था, लेकिन मैंने हमेशा ऐसे प्रोजेक्ट्स को ठुकराया. मुझे इस बात का दुख नहीं कि ऐसे गाने बनाए गए, बल्कि इस बात का अफसोस है कि ये सुपरहिट हुए. इसका मतलब है कि दर्शकों की पसंद ही ऐसी है.
समाज को खुद पर सवाल उठाने की जरूरत है
जावेद अख्तर ने कहा कि समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा -मैंने कई माता-पिता को यह कहते सुना है कि उनकी आठ साल की बेटी ‘चोली के पीछे क्या है’ पर बहुत अच्छा डांस करती है. जब समाज के मूल्य ही ऐसे होंगे, तो फिल्मों और गानों से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं उन्होंने यह भी कहा कि सिनेमा केवल एक अभिव्यक्ति का माध्यम है, लेकिन असल ज़िम्मेदारी दर्शकों और समाज की है.
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