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झारखंड में ब्लड सेफ्टी पर सवाल, NAT टेस्टिंग के अभाव में बढ़ रहा संक्रमण का रिस्क

Ranchi: चाईबासा में थैलेसीमिया से पीड़ित मासूम बच्चों में HIV संक्रमण की पुष्टि ने झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की नींव हिला दी है. यह सिर्फ़ एक हादसा नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की नीतिगत कमियों को उजागर करने वाली घटना है.


ब्लड ट्रांसफ्यूजन के दौरान हमेशा एक residual risk बना रहता है. आधुनिक ELISA या CLIA टेस्टिंग से भी संक्रमण का खतरा पूरी तरह खत्म नहीं होता, क्योंकि विंडो पीरियड में वायरस शरीर में मौजूद तो होता है, लेकिन टेस्ट से पकड़ में नहीं आता. इस जोखिम को कम करने का एकमात्र प्रभावी उपाय है Nucleic Acid Test (NAT), जो वायरस को शुरुआती चरण में पहचान सकती है. दुर्भाग्य से झारखंड के ज़्यादातर ब्लड बैंक अब भी NAT आधारित स्क्रीनिंग नहीं करते.

 

राज्य में अधिकांश ब्लड बैंक ELISA/CLIA टेस्ट पर निर्भर हैं, e-RaktKosh प्लेटफ़ॉर्म से पूरी तरह जुड़े नहीं हैं और Donor Traceability System का भी अभाव है. रक्तदान के बाद दानकर्ता की स्वास्थ्य स्थिति का कोई डिजिटल रिकॉर्ड नहीं रखा जाता. यदि भविष्य में कोई डोनर संक्रमित पाया जाता है, तो उसके पुराने ब्लड यूनिट्स को ट्रेस करना लगभग असंभव हो जाता है.


थैलेसीमिया जैसे मरीजों को बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है, जिससे संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. ऐसे high risk groups (थैलेसीमिया, गर्भवती महिलाएं, बच्चे, ICU मरीज) के लिए NAT टेस्टिंग अनिवार्य की जानी चाहिए.

 

राज्य सरकार ने घटना के बाद संबंधित अधिकारियों को निलंबित कर जांच शुरू की है, पर यह तात्कालिक कदम है. स्थायी समाधान के लिए Systemic Reforms जरूरी है, जैसे कि हर ब्लड यूनिट का बारकोडिंग, NAT टेस्टिंग, डोनर की यूनिक आईडी ट्रेसबिलिटी और सभी ब्लड बैंकों को NABH accreditation के दायरे में लाना.

 

झारखंड को अब एक ऐसी Blood Transfusion Policy की आवश्यकता है, जो Tested, Trusted & Traceable सिस्टम का आदर्श उदाहरण बने. ताकि भविष्य में किसी मासूम की ज़िंदगी लापरवाही की कीमत न चुकाए.

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