Ranchi : झारखंड जनाधिकार महासभा ने आज एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन कर राज्य में वन अधिकार कानून के सही तरीके से लागू न होने पर चिंता जताई है.
उन्होंने बताया कि झारखंड में वन अधिकार अधिनियम 2006 को लागू हुए करीब 17 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज भी राज्य के आदिवासी और वन पर निर्भर समुदाय अपने कानूनी अधिकारों से वंचित हैं.
उनका कहना है कि कानून जंगलों में रहने वाले लोगों को उनके पारंपरिक अधिकार लौटाने के लिए बनाया गया था, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही और विभागीय हस्तक्षेप के कारण इसका सही लाभ नहीं मिल पा रहा है.
कानून के अनुसार जंगल की सुरक्षा, संरक्षण और प्रबंधन का अधिकार ग्राम सभा को दिया गया है. इसके तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों तरह के वन अधिकार पत्र जारी किए जाने का प्रावधान है, लेकिन झारखंड में सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र नहीं जारी किया जा रहा हैं. कई गांवों में लोगों के दावे वर्षों से लंबित पड़े हैं.
जन संगठनों ने आरोप लगाया है कि वन अधिकार दावों की जांच और सत्यापन की जिम्मेदारी ग्राम सभा और उसकी वन अधिकार समिति (FRC) की होती है. नियमों में स्पष्ट है कि बिना ग्राम सभा की सहमति के किसी भी दावे को खारिज नहीं किया जा सकता.
इसके बावजूद कई जगहों पर वन और राजस्व विभाग के अधिकारी अपने स्तर पर जांच कर रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं और उन्हीं रिपोर्टों के आधार पर दावे रद्द कर दिए जा रहे हैं.
इसके अलावा, दावों की सुनवाई की प्रक्रिया भी सही तरीके से नहीं अपनाई जा रही है. वन अधिकार तय करने की प्रक्रिया अर्ध-न्यायिक मानी जाती है, जिसमें दावा करने वाले और विभाग दोनों को अपने-अपने साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर मिलना चाहिए.
लेकिन कई मामलों में जिला और अनुमंडल स्तर की समितियां केवल विभागीय रिपोर्ट को ही अंतिम मानकर फैसला कर रही हैं, जिससे बड़ी संख्या में दावेदारों के अधिकार खत्म हो रहे हैं.
संगठनों का कहना है कि यह स्थिति कानून और नियमों का खुला उल्लंघन हो रहा है. इससे न केवल ग्राम सभा की संवैधानिक भूमिका कमजोर हो रही है, बल्कि जंगल पर निर्भर लोगों की आजीविका और सुरक्षा भी खतरे में पड़ रही है.
जन संगठनों ने राज्य सरकार से मांग की है कि वह वन अधिकार कानून को ईमानदारी से लागू करे, सभी लंबित दावों का समयबद्ध निपटारा सुनिश्चित करे और वन विभाग द्वारा किए जा रहे गैर-कानूनी हस्तक्षेप पर तत्काल रोक लगाए.
साथ ही कानून के तहत ग्राम सभा के अधिकारों का सम्मान करते हुए अधिक से अधिक गांवों को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र जारी किए जाएं, ताकि वन पर निर्भर समुदायों को उनका वास्तविक अधिकार मिल सके.
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