Ranchi : झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स को नया नेतृत्व मिला है. डॉ हीरेंद्र बिरुवा को रिम्स का सुपरिटेंडेंट नियुक्त किया गया है. वे इस पद पर पहुंचने वाले पहले आदिवासी डॉक्टर हैं.
बरकुंडिया गांव से शुरू हुआ संघर्ष
डॉ हीरेंद्र बिरुवा का जन्म झारखंड-ओडिशा सीमा पर स्थित मंझारी प्रखंड के अत्यंत पिछड़े गांव बरकुंडिया में हुआ था. मिट्टी के घर, फूस की छत, पगडंडियों और गरीबी के बीच पले-बढ़े हीरेंद्र आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं. उनके गांव की गालियों में खेलते हुए बड़े हुए हीरेंद्र ने जो सपना देखा, उसे उन्होंने मेहनत और शिक्षा के जरिए साकार किया.
बच्चों की सर्जरी में माहिर
डॉ हीरेंद्र बिरुवा पीडियाट्रिक सर्जरी यानी बच्चों की सर्जरी के विशेषज्ञ हैं. रिम्स में वे इस विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष (HOD) हैं. नवजात, शिशु और किशोरों की जटिल सर्जरी करने में उन्हें महारत हासिल है. यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें अत्यधिक सावधानी और आत्मविश्वास की जरूरत होती है.
PGIMER से हासिल की सुपर-स्पेशलिटी डिग्री
डॉ बिरुवा ने चंडीगढ़ स्थित प्रतिष्ठित PGIMER संस्थान से एमबीबीएस, एमएस (सर्जरी) और फिर पीडियाट्रिक सर्जरी में MCh डिग्री हासिल की. MCh डिग्री चिकित्सा जगत की सबसे उच्च स्तर की सर्जिकल डिग्री मानी जाती है. वे PGIMER में सीनियर रेजिडेंट भी रह चुके हैं. बाद में झारखंड लौटकर वे रिम्स से जुड़ गए.
शिक्षा में संघर्ष और समर्पण
डॉ बिरुवा की स्कूली शिक्षा चाईबासा के संत जेवियर्स उच्च विद्यालय लुपुंगुटू से हुई थी, जबकि इंटरमीडिएट उन्होंने संत जेवियर्स कॉलेज रांची से साइंस स्ट्रीम में किया. उनके पिता लंका बिरुवा एक सरकारी क्लर्क थे, जिन्होंने अपने बेटे को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास किया.
रिम्स की कमान और नई उम्मीद
रिम्स जैसे संस्थान को सुचारू रूप से चलाना एक बड़ी जिम्मेदारी है. सुपरिटेंडेंट के रूप में डॉ हीरेंद्र बिरुवा इस कार्य को निष्ठा और अनुशासन के साथ निभा रहे हैं.
विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष गौरव
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर डॉ हीरेंद्र बिरुवा की यह उपलब्धि झारखंड ही नहीं, पूरे देश के आदिवासी समाज के लिए गर्व का विषय है. वे साबित करते हैं कि साधनों की कमी कभी भी सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती, अगर इरादे मजबूत हों.
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