New Delhi : सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने आज यह कह कर चौंका दिया कि विवाह जैसी व्यवस्था का इस्तेमाल प्राचीन काल से महिलाओं को गुलाम बनाने के लिए किया जाता रहा है.
उन्होंने कहा कि इतिहास पर नजर डालें तो सामने आता है कि हर युग में, हर संस्कृति में पूरी दुनिया में विवाह को महिलाओं को अपने अधीन करने का हथियार बनाया गया.
जस्टिस ने कहा कि कानूनी और सामाजिक सुधार के जरिए आज विवाह की व्यवस्था में बराबरी की भावना का विकास हो रहा है. कहा कि समय बदल रहा है. समाज में आपसी सम्मान और संवैधानिक मूल्यों के अनुसार समानता का भाव जग रहा है.
दरअसल जस्टिस सूर्यकांत दिल्ली पैमिल लॉयर्स एसोसिएशन के बैनर तले आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे. सेमिनार का आयोजन दिल्ली हाई कोर्ट की महिला वकीलों के सहयोग से किया गया था. कार्यक्रम का विषय था. अंतर-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य: इंग्लैंड और भारत में पारिवारिक कानून में उभरते रुझान और चुनौतियां.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत और इंग्ंलैंड में अब विवाह जैसी संस्था के प्रति अच्छी समझ विकसित हो रही है, कहा कि कभी विवाह और उत्तराधिकार के मामले धार्मिक और दार्शनिक विचारों की कैद में थे.
जस्टिस ने कहा, औपनिवेशिक काल में हिंदू और मुसलमानों के लिए पर्सनल लॉ का संहिताकरण किया गया. कहा कि सभी समुदायों की अलग मान्यताएं और परंपराएं होती हैं.
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत का कहना था कि स्वतंत्रता के बाद भारतीय संसद और न्यायपालिका ने परिवार से जुड़े कानूनों को प्रमुखता दी और फ्रेमवर्क तैयार किया. और यह आज भी प्रासंगिक है,
जस्टिस ने कहा, विवाह की रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू हुई. इस प्रक्रिया में बाल विवाह और असहमति वाले विवाह की जानकारी साममे आने लगी. कानून के माध्यम से महिलाओं को मुआवजा, उत्तराधिकार और मकान का अधिकार मिला.
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