New Delhi : तमिलनाडु सरकार द्वारा विधानसभा में पास किये गये बिल को गवर्नर दवारा अनिश्चितकाल तक लटकाये जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. इसकी डेडलाइन तय करने की राज्य सरकारों की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज बुधवार को लगातार सातवें दिन सुनवाई हुई.
पांच जजों की बैंच मामले की सुनवाई कर रही है. बैंच में चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर शामिल हैं. याद करें कि जजों ने कल मंगलवार को सुनवाई के क्रम में कहा था कि राज्यपाल बिलों को अनिश्चितकाल तक लटका नही सकते.
अहम बात यह है कि सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सहित तेलंगाना और हिमाचल की सरकारों ने भी विधेयकों को रोककर रखने की गवर्नर की विवेकाधिकार शक्ति का विरोध किया. राज्य सरकारों ने कहा कि कानून बनाना विधानसभा का काम है. कानून बनाने में राज्यपालों की कोई भूमिका नहीं हो सकती.
दरअसल मामला यह है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से सवाल किया था कि क्या अदालत राज्यपालों और राष्ट्रपति को बिलों पर फैसला करने के लिए समय-सीमा तय कर सकती है. विवाद यह था कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने राज्य सरकार के बिल रोककर रखे थे.इसके बाद तमिलनाडु सराकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है. साथ ही आदेश दिया था कि राज्यपाल द्वारा भेजे गये बिल पर राष्ट्रपति को तीन माह के भीतर फैसला लेना होगा. इस आदेश के बाद राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राय मांगते हुए 14 सवाल पूछे थे.
आज सुनवाई के क्रम में पश्चिम बंगाल की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि अगर विधानसभा किसी बिल को पास कर गवर्नर को भेजती है, तो उन्हें उस पर हस्ताक्षर करना पडेगा. तर्क दिया कि संविधान की धारा-200 में गवर्नर के सैटिस्फैक्शन जैसी कोई शर्त नहीं है.
कपिल सिब्बल ने कहा, गवर्नर या तो बिल पर हस्ताक्षर करें, नहीं को राष्ट्रपति के पास भेज दें. सिब्बल ने किसी बिल को लगातार रोके रखने को संविधान की भावना के खिलाफ करार दिया. हिमाचल सरकार के वकील आनंद शर्मा ने संघीय ढांचे (फेडरलिज्म) को भारत की ताकत बताते हुए दलील दी कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है.अगर गवर्नर बिल रोकते हैं तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा.
कर्नाटक सरकार के वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि किसी भी राज्य में दोहरी सरकार (डायार्की) की व्यवस्था नहीं चल सकती. राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना होगा.
इस मामले की तह में जायें तो सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व की सुनवाई में कहा था कि अगर राज्यपाल लंबे समय तक बिल को रोक कर रखते हैं, तो जल्दी शब्द का महत्व खत्म हो जायेगा. इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट मे तर्क दिया था कि राज्य सरकारें इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकतीं, कहा था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसले न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आ सकते.
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