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NTPC फॉरेस्ट क्लियरेंस उल्लंघन:  CF ने एक ही दिन जारी किए दो विरोधाभासी आदेश, जांच पर उठे सवाल

Ranchi: हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल में एनटीपीसी द्वारा फॉरेस्ट क्लीयरेंस (FC) और पर्यावरणीय स्वीकृति (EC) की शर्तों का उल्लंघन कर सड़क मार्ग से कोयला ट्रांसपोर्टेशन के मामले में बड़ा मोड़ आ गया है. वन संरक्षक (सीएफ) ममता प्रियदर्शी ने जांच समिति की अंतरिम रिपोर्ट पर पांच महीने बाद एक ही दिन दो विरोधाभासी निर्देश जारी कर दिए. पहले आदेश में समिति से समीक्षा कर पूर्ण प्रतिवेदन सौंपने की मांग की गई, वहीं दूसरे आदेश में उसी रिपोर्ट पर स्पष्टीकरण भी मांग लिया गया.


जांच समिति की कड़ी प्रतिक्रिया


पूर्वी वन प्रमंडल के सहायक वन संरक्षक अभय कुमार सिन्हा, जो जांच समिति के सदस्य हैं, ने सीएफ को जवाब देते हुए कहा कि क्या किसी मामले के निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले वरीय अधिकारियों से पूछना जरूरी है? पांच महीने बाद स्पष्टीकरण मांगना और विभागीय कार्रवाई का भय दिखाना पूरी तरह अनुचित है.


वन संरक्षक के स्पष्टीकरण में सहायक वन संरक्षक ने दिया जवाब


वन संरक्षक ममता प्रियदर्शी द्वारा पूछे गए स्पष्टीकरण पर पूर्वी वन प्रमंडल के सहायक वन संरक्षक अभय कुमार सिन्हा ने कहा है कि शिकायत की गंभीरता और प्रारंभिक जांच का उद्देश्य शिकायत शनिकांत द्वारा प्रस्तुत की गई थी, जिसमें वन प्रमंडल पदाधिकारी हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल के खिलाफ विभागीय और कानूनी कार्रवाई की मांग की गई थी. 


यह मामला वन संरक्षण अधिनियम, 1980 (Forest Conservation Act, 1980) और पर्यावरणीय स्वीकृति (Environmental Clearance) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधानों तथा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (Wildlife Protection Act, 1972) के प्रावधानों के उल्लंघन से जुड़ा हुआ है. 


प्रारंभिक जांच का उद्देश्य इन्हीं गंभीर तथ्यों की पड़ताल करना था. वन स्वीकृति (FC) और पर्यावरणीय स्वीकृति (EC) की शर्तों का उल्लंघन हमारे जांच प्रतिवेदन में स्पष्ट रूप से पाया गया है कि उपयोगकर्ता एजेंसी (एन. टी.पी.सी.) संशोधित वन स्वीकृति (FC) चरण-2 तथा पर्यावरणीय स्वीकृति (EC)" की शर्तों का पूर्णतः पालन नहीं कर रही है. 


वन स्वीकृति (FC) की शर्त संख्या 06 (जो चरण-2 स्वीकृति से संबंधित है) का उल्लंघन देखा गया है. इस शर्त के अनुसार, पकरी-बरवाडीह कोयला खनन परियोजना में कोयला परिवहन के लिए वन भूमि की अनुमति कन्वेयर सिस्टम के माध्यम से दी गई थी, न कि सड़क परिवहन के लिए. इसके बावजूद, वर्तमान में सड़क मार्ग से कोयला परिवहन किया जा रहा है.


यह वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का उल्लंघन है. एन.टी.पी.सी. की पर्यावरणीय स्वीकृति (EC)" (दिनांक 19.05.2009) की शर्त 2A (IX) में "पर्यावरणीय प्रयोगशाला की स्थापना" का प्रावधान था, जिसे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के परामर्श से स्थापित किया जाना था. 


जांच में पाया गया कि इस शर्त का भी पूर्णतः पालन नहीं किया गया है. स्वीकृति यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है कि हालांकि पर्यावरणीय स्वीकृति (EC) और वन (FC) अलग-अलग होती है. लेकिन वे पर्यावरणीय प्रावधानों के विभिन्न पहलुओं को कवर करती हैं और आपस में जुड़ी हुई हैं. सक्षम प्राधिकारी (M.O.E.F&C.C.) द्वारा पहले ही इस विषय पर स्पष्ट निर्देश दिए जा चुके हैं.

 

अब उठ रहे बड़े सवाल


क्या सीएफ के विरोधाभासी आदेशों से जांच को कमजोर करने की कोशिश हो रही है?


क्या विभागीय दबाव में जांच समिति को डराने-धमकाने की कोशिश की जा रही है?


और सबसे बड़ा सवाल – क्या हमारे पर्यावरण कानून सिर्फ कागजों तक सीमित रह गए हैं?

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