New Delhi: भारत मंडपम में आयोजित भारतीय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में सोमवार को झारखंड पवेलियन कला, संस्कृति और कारीगर सशक्तिकरण का प्रमुख केंद्र बना रहा. पवेलियन में उद्योग सचिव सह स्थानिक आयुक्त अरवा राजकमल ने विभिन्न स्टॉलों का निरीक्षण किया और उनकी सराहना की.

इस वर्ष झारखंड की पारंपरिक पैतकर, सोहराय और कोहबर कला के साथ मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड की पहल से तैयार किए गए लोककला प्रदर्शन ने दर्शकों का विशेष ध्यान आकर्षित किया. पवेलियन में प्रदर्शित जादोपटिया, पैतकर और सोहराय पेंटिंग्स ने राज्य की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया.
पैतकर कला, जो सिंहभूम की विशिष्ट कथात्मक शैली के रूप में जानी जाती है, पुनर्नवीनीकृत कागज पर सिंदूर, गेरू और खनिज रंगों से तैयार की जाती है. स्टॉल संचालकों ने बताया कि इन प्राकृतिक रंगों को पत्थर घिसकर और नीम व बबूल के गोंद के मिश्रण से बनाया जाता है, जिससे पेंटिंग लंबे समय तक सुरक्षित रहती है.
इसी प्रकार, झारखंड की विश्वप्रसिद्ध सोहराय कोहबर पेंटिंग भी पवेलियन का प्रमुख आकर्षण रही. वर्ष 2020 में मिले जीआई टैग के बाद इस कला की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है. लाल और पीली मिट्टी, कोयला तथा चूना आधारित प्राकृतिक रंगों से बनी यह शैली अब पारंपरिक दीवारों से निकलकर वस्त्रों और होम डेकोर उत्पादों तक पहुंच चुकी है.
पवेलियन का खादी स्टॉल भी लोगों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय रहा. स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार तसर सिल्क, कटिया सिल्क और झारखंड खादी के उत्पादों ने आगंतुकों को आकर्षित किया.
हाथ से काता सूत, प्राकृतिक फाइबर और देसी कताई-बुनाई की उत्कृष्ट गुणवत्ता ने खादी स्टॉल को मेले के प्रमुख आकर्षणों में शामिल किया. दर्शकों ने इन वस्त्रों की मुलायम बनावट, आरामदायक उपयोगिता और पर्यावरण अनुकूल विशेषताओं की सराहना की.
झारखंड पवेलियन न केवल कला प्रदर्शन का स्थल बना, बल्कि राज्य सरकार की नीतिगत प्रतिबद्धता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के प्रयासों का प्रतीक भी साबित हुआ.
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