Palamu : झारखंड की आत्मा का एक हिस्सा चुपचाप विलीन हो गया. दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी का देहावसान केवल एक व्यक्ति की विदाई नहीं, बल्कि एक युग का अंत है. उनके बिना झारखंड अधूरा है, उसकी चेतना अधूरी है, उसकी लड़ाई अधूरी है.
सुधीर चंद्रवंशी, जो स्वयं जनसंघर्षों की राजनीति से जुड़े रहे हैं, ने भावुक स्वर में कहा कि झारखंड का सितारा खो गया। दिशोम गुरुजी सिर्फ नाम नहीं थे, वे संकल्प थे, संघर्ष थे, चेतना थे.
जिस दौर में साहूकारी और शोषण झारखंड की रगों में जहर बनकर दौड़ रहा था, उस समय एक आवाज बुलंद हुई – एक ऐसी आवाज जो अन्याय से कभी नहीं डरी, जो शाषकों के लिए काल बन गई. वह आवाज दिशोम गुरु की थी. वे गरीबों, वंचितों और आदिवासियों के सबसे बड़े सहारा बनकर उभरे, जिन्होंने न पद की लालसा की, न सत्ता की भूख.
झारखंड राज्य का गठन हो, उसका नामकरण हो, या जल-जंगल-जमीन की रक्षा – हर मोर्चे पर दिशोम गुरु सबसे आगे खड़े रहे. उन्होंने आंदोलन को अपना जीवन बना लिया. ‘आंदोलनकारी’ और ‘क्रांतिकारी’ जैसे शब्द भी उनके व्यक्तित्व को छोटा कर देते हैं.
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