Ranchi : झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूजे) के विज्ञान भवन सभागार में विभिन्न विषयों में भारतीय ज्ञान प्रणालियों की खोज विषय पर एक महत्वपूर्ण पैनल चर्चा का आयोजन किया गया. यह आयोजन राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की भावनाओं के अनुरूप किया गया, जिसका उद्देश्य पारंपरिक भारतीय ज्ञान को समकालीन शिक्षा प्रणाली में एकीकृत करना था.
कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रज्ञा शुक्ला ने किया और इसका नेतृत्व एनईपी समन्वयक डॉ भास्कर सिंह ने किया. कार्यक्रम की सफलता में एनईपी सारथी श्री आत्मदेव ठाकुर और श्री कौशिक कुमार होता का विशेष योगदान रहा.प्रो अरुण कुमार पाढ़ी (डीन शोध एवं विकास) ने उद्घाटन वक्तव्य में कहा पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक अनुसंधान के साथ एकीकृत करके उच्च शिक्षा में आत्म-चिंतन, स्थिरता और सांस्कृतिक जुड़ाव को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा की महत्ता को रेखांकित करते हुए इसे वैश्विक शिक्षा प्रणाली के लिए भी एक मूल्यवान योगदान बताया.
पैनल चर्चा में कई प्रतिष्ठित शिक्षाविदों ने भाग लिया जिनमें प्रो तपन कुमार बसंतिया, प्रो आशीष सचान, प्रो रवीन्द्रनाथ सरमा, डॉ शशांक कुलकर्णी, डॉ राजकिशोर मिश्रा, डॉ निर्मली बोरदोलोई, डॉ शशि कुमार मिश्रा, और सुमंत हलदर शामिल थे. सभी पैनलिस्टों ने भारतीय ज्ञान प्रणालियों के विविध आयामों जैसे वैदिक साहित्य, आयुर्वेद, गणित, खगोल विज्ञान, मंदिर वास्तुकला, दर्शन, पर्यावरणीय चेतना, पारंपरिक व्यापार प्रणाली और प्राचीन शिक्षा मॉडल पर अपने विचार साझा किए.
इस विचारमंथन के दौरान यह सहमति बनी कि भारतीय ज्ञान प्रणाली को पाठ्यक्रमों में शामिल करने से न केवल शैक्षणिक दृष्टिकोण व्यापक होगा बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को समझने और आगे बढ़ाने में भी सहायक होगा.प्रतिभागियों ने इस पहल की सराहना करते हुए इसे पाठ्यक्रम विकास और अंतःविषयक अनुसंधान के लिए उपयोगी बताया. चर्चा के अंत में सीयूजे द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने की प्रतिबद्धता को दोहराया गया.
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