Ranchi : डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में पीएचडी करने के इच्छुक नेट–जेआरएफ उत्तीर्ण विद्यार्थियों को शोध निर्देशक (गाइड) नहीं मिल पा रहा हैं. कई बार विश्वविद्यालय और कॉलेज प्रशासन के दरवाजे खटखटाए जा चुके है.
बावजूद उन्हें सिर्फ शिक्षक नहीं हैं का आश्वासन दिया जा रहा है. छात्र-छात्राएं मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं. वर्षों की मेहनत से छात्र नेट–जेआरएफ परीक्षा पास करते है. छात्रों को यह डर लगातार सताने लगा है. नेट–जेआरएफ पास करने के बाद तीन वर्ष के भीतर गाइड नहीं मिलने पर वे सरकार की छात्रवृत्ति योजना से वंचित हो जाएंगे.
विश्वविद्यालय में जनजातीय भाषा विभाग में पांच जनजातीय भाषाओं मुंडारी, कुडुख, संथाली, हो और खड़िया में स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई होती है.
वहीं, क्षेत्रिय भाषाओं में नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया और कुरमाली की पढ़ाई कराई जा रही हैं. लेकिन विडंबना यह है कि खोरठा को छोड़कर बाकी सभी भाषा विभागों में एक भी स्थायी शिक्षक नियुक्त नहीं है.
गाइड की तलाश में विद्यार्थी, भगवान भरोसे भविष्य
शोध निर्देशक के अभाव में विद्यार्थियों को जुगाड़ के सहारे गाइड खोजने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है, फिर भी सफलता नहीं मिल रही. सबसे अधिक असर गरीब और मध्यमवर्गीय छात्रों पर पड़ रहा है. जो सीमित संसाधनों के बावजूद उच्च शिक्षा का सपना देख रहे हैं.
केस–1 किराए के कमरे में संघर्ष, भविष्य अधर में
कुडुख भाषा विभाग की एक छात्रा ने जून 2024 में नेट–जेआरएफ परीक्षा पास की. वह लोहरदगा की रहने वाली है. उसके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं.
पढ़ाई के लिए वह रांची में 3000 रुपये मासिक किराए पर रह रही है. लेकिन नेट–जेआरएफ पास करने के बाद भी उसे आज तक शोध निर्देशक नहीं मिल पाया है. समय बीतने के साथ उसका डर बढ़ता जा रहा है कि कहीं उसका सपना सिर्फ व्यवस्था की कमी के कारण टूट न जाए.
केस -2 किसान की बेटी की सफलता, लेकिन गाईड का अभाव
नागपुरी विभाग की एक छात्रा (नाम नहीं छापने) की शर्त पर बताई कि नेट पास जनवरी 2024 में की है. कॉलेज पढ़ने 60 किमी दूर बुंडु से आती है. मां-बाप खेती बाड़ी करते है.
साग सब्जी बेचकर, कॉलेज जाने के लिए घर से 100 रूपया मिलता है. इसी से पढ़ाई कर रहे है. लेकिन कॉलेज में स्थायी शिक्षक और गाईड नहीं मिल रहा है.
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