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जल नहीं जहर: दामोदर और स्वर्णरेखा नदी में बढ़ती बीमारियों की आहट

Ranchi : पूर्वी भारत की जीवनरेखा कही जाने वाली दामोदर और स्वर्णरेखा नदियां अब स्वास्थ्य-संकट की नई कहानी सुना रही हैं. लंबे समय से इन नदियों पर आश्रित किसान, मछुआरे और ग्रामीण अब पानी के साथ-साथ भारी धातुओं, रासायनिक प्रदूषण और अनिश्चित स्वास्थ्य-जोखिमों से जूझ रहे हैं.

 

स्वर्णरेखा की जल-गुणवत्ता पर जारी आधिकारिक बुलेटिन में pH 6.5 से 8.5 की सुरक्षित सीमा में, इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी निर्धारित 2250 µS/cm सीमा से भीतर, घुली ऑक्सीजन 4 mg/L से ऊपर और BOD 3 mg/L से कम दर्ज की गई. 

 

वर्षा-काल में नदी का उफान भी चिंता बढ़ाने वाला रहा. जून में राजघाट पर जल-स्तर 11.56 मीटर तक पहुंच गया जबकि खतरे की सीमा 10.36 मीटर है. जुलाई में जामशेदपुर के मांगों ब्रिज पर स्तर 123.36 मीटर दर्ज हुआ, जो घोषित खतरे की सीमा 121.50 मीटर से अधिक है.

 

दूसरी ओर, दामोदर नदी के संदर्भ में शोधों में पाया गया कि 21 से 33 प्रतिशत नमूने वर्ष के विभिन्न मौसमों में गंभीर रूप से प्रदूषित श्रेणी में थे. उद्योग क्षेत्र के पास रहने वाले ग्रामीणों ने सफेद पड़ी मिट्टी, समय से पहले सूखती फसलें और मृत मछलियों की शिकायतें दर्ज कीं. डॉक्टरों ने त्वचा रोग, गुर्दा समस्याएं और लगातार थकान के बढ़ते मामलों का उल्लेख किया है.

 

पूर्व अध्ययनों में दामोदर के पानी में आर्सेनिक 0.04–0.09 mg/L, निकेल लगभग 0.1 mg/L और कैडमियम करीब 0.03 mg/L तक दर्ज किए गए थे, जो पीने के पानी के मानकों से कई गुना अधिक हैं. स्वर्णरेखा में मछलियों और झींगा में आर्सेनिक 0.24 mg/kg, निकेल 5 mg/kg और जिंक 50 mg/kg तक दर्ज किए गए थे, जिससे बच्चों में neurological जोखिम की आशंका जताई गई थी.

 

नियमों के अनुसार DO 5 mg/L या उससे अधिक, BOD 3 mg/L तक, pH 6.5-8.5 और कोलीफॉर्म 2500/100 mL तक होना चाहिए. लेकिन कई अवसरों पर इन नदियों में ये मानक पूरी तरह नहीं मिल पाते. इसके बावजूद प्रभावित इलाकों में उद्योगों के लाइसेंस नवीनीकृत होते रहे हैं और व्यापक डेटा सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है.

 

सतही जल गुणवत्ता ठीक दिखने भर से खतरा खत्म नहीं होता, बल्कि तलछट में भारी धातुएं और खाद्य-श्रृंखला में घुलते रसायन कहीं अधिक घातक हैं. निगरानी की कमी और पारदर्शिता के अभाव ने इसे स्वास्थ्य-संकट का रूप दे दिया है.

 

यदि समय रहते गहन परीक्षण, डेटा की सार्वजनिक उपलब्धता, सुरक्षित पेयजल-व्यवस्था और स्वास्थ्य स्क्रीनिंग नहीं की गई, तो इन नदियों और इनके तटवर्ती समुदायों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

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