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रामदास सोरेन : संघर्ष से सफलता तक का सफर, 44 वर्षों बाद मंत्री पद की कुर्सी तक पहुंचे

Ranchi :  झारखंड के वरिष्ठ नेता और शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन का शुक्रवार को निधन हो गया. उन्होंने दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल सरिता विहार (जसोला) में अंतिम सांस ली. रामदास सोरेन 62 वर्ष के थे. उनके निधन की खबर से झारखंड में शोक की लहर है. 

 

44 वर्षों में देखे कई उतार चढ़ाव

रामदास सोरेन की राजनीतिक सफर की बात करें तो उन्होंने अपने 44 वर्षों के लंबे राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे. लेकिन कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. वे झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के समर्पित कार्यकर्ता रहे. 

 

झारखंड आंदोलन में भी निभाई थी सक्रिया भूमिका

आदिवासी समाज में उनकी मजबूत पकड़ थी और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर वे सदैव मुखर रहे. रामदास सोरेन ने झारखंड आंदोलन में शिबू सोरेन के साथ सक्रिय भूमिका निभाई थी. इस आंदोलन के दौरान उनपर कई मुकदमे भी दर्ज हुए थे.

  
1980 में की थी राजनीतिक करियर की शुरूआत

रामदास सोरेन ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1980 में झामुमो की सदस्यता लेने के साथ की थी. उसी वर्ष उन्हें घोड़ाबांधा का पंचायत सचिव बनाया गया था. वह धीरे-धीरे पार्टी में आगे बढ़ते गए और जमशेदपुर प्रखंड कमेटी के प्रथम सचिव, अनुमंडल कमेटी के प्रथम सचिव और अविभाजित जिले में जिला सचिव के पद पर रहे. 

 

चुनावी संघर्ष और सफलता

रामदास सोरेन ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 2004 में घाटशिला से लड़ा. लेकिन पार्टी से टिकट नहीं मिलने के कारण वह निर्दलीय मैदान में उतरे और हार गए. इसके बाद 2009 में पार्टी ने उन्हें टिकट दिया और वह घाटशिला से विधायक चुने गए. 

 

हालांकि 2014 में वह भाजपा के लक्ष्मण टुडू से चुनाव हार गए. लेकिन 2019 में दोबारा झामुमो के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीतकर रामदास सोरेन झारखंड विधानसभा पहुंचे. इसके बाद 2024 में भी झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़कर उन्होंने जीत हासिल की.


ग्रामीण पृष्ठभूमि से नेतृत्व तक

रामदास सोरेन का जन्म 1 जनवरी 1963 को झारखंड के एक आदिवासी परिवार में हुआ था. वे संथाल आदिवासी समुदाय से आते हैं. एक मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े सोरेन ने बचपन से ही समाज की जमीनी सच्चाइयों को महसूस किया.

 

प्रारंभिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से प्राप्त करने के बाद उन्होंने स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की. छात्र जीवन से ही सामाजिक मुद्दों में उनकी गहरी रुचि थी. राजनीति के अलावा वे सामाजिक कार्यों में भी लगातार सक्रिय रहे. 

 

एक संघर्षशील नेता के रूप में बनाई पहचान 

रामदास सोरेन ने कठिन संघर्ष और समर्पण के बल पर झारखंड की राजनीति में एक विशिष्ट स्थान बनाया. उनके दादा टेल्को में कार्यरत थे और घोड़ाबांधा में ही बस गए थे. रामदास सोरेन की राजनीतिक यात्रा ग्राम प्रधान के रूप में शुरू हुई, जब उनके पिता के निधन के बाद उन्हें घोड़ाबांधा का ग्राम प्रधान चुना गया. 

 

चंपाई सोरेन के साथ संबंध

रामदास सोरेन और चंपाई सोरेन के बीच एक करीबी संबंध है. जब चंपाई सोरेन भाजपा में शामिल हुए थे तो रामदास सोरेन ने कहा था कि वह बड़े नेता हैं और रहेंगे. पार्टी ने उन्हें हमेशा सम्मान दिया है और पार्टी से बड़ा कोई व्यक्ति कभी नहीं हो सकता है.

 

शिक्षा मंत्री के रूप में नई जिम्मेदारी

रामदास सोरेन को हाल ही में झारखंड सरकार में शिक्षा मंत्री के रूप में शामिल किया गया. उन्होंने राज्य में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की. खासकर उन्होंने आदिवासी बच्चों की शिक्षा पर विशेष जोर दिया. 

 

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