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रामदयाल मुंडा ने झारखंडी संस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाने का कार्य किया : सुदेश

Ranchi : आजसू पार्टी ने शनिवार को झारखंड आंदोलनकारी पद्मश्री स्व डॉ रामदयाल मुंडा की 86वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की. आजसू के केंद्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो ने पार्टी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के साथ मोरहाबादी स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की.

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आजसू के आंदोलन को बौद्धिक दिशा दी थी डॉ रामदयाल ने : सुदेश

 

इस अवसर पर सुदेश महतो ने कहा कि स्व. डॉ रामदयाल मुंडा ने आजसू के आंदोलन को बौद्धिक दिशा दी थी. उन्होंने झारखंडी संस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाने का कार्य किया. वे झारखंड की आत्मा थे और उनके विचार आजसू पार्टी के लिए सदैव मार्गदर्शक बने रहेंगे.


डॉ रामदयाल मुंडा के संघर्ष और योगदान को याद किया जाएगा
                                              

महतो ने कहा कि डॉ. मुंडा ने आजसू की स्थापना के साथ झारखंड आंदोलन को नई ऊर्जा दी थी. उनके संघर्ष और योगदान को सदैव याद किया जाएगा. उन्होंने कहा कि झारखंड की जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं को आगे बढ़ाने में उनकी भूमिका रही. सरहुल पर्व को महोत्सव का स्वरूप भी उन्होंने ही दिया था. आजसू कार्यकर्ता उन्हें सदैव अपना आदर्श मानते रहे हैं.

 

कांग्रेस मुख्यालय में भी मनायी गयी डॉ रामदयाल मुंडा जंयती

पदमश्री पूर्व सांसद डा. रामदयाल मुण्डा की जयंती प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में मनाई गई. इस अवसर पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केशव महतो ने नाची से बांची को अपने जीवन का मूल मंत्र बनाने वाले डा. मुण्डा ने झारखण्ड की संस्कृति को विश्व पटल पर पहचान दिलाई.

 

उन्होंने कला, शिक्षा और जनजातीय भाषा के विकास और संरक्षण के लिए जीवन पर्यन्त काम किया. उनकी सोच और यादें झारखंडी समाज को नई दिशा देती है. डा. मुण्डा बहुआयामी व्यक्तित्व एवं लोक संस्कृति के नायक थे.

 

राजनीति, कला, संस्कृति व समाज के प्रति समर्पित सोच वाले थे. उन्होंने झारखण्ड के मूल सवाल जल, जंगल, पहचान, भाषा व संस्कृति पर आजीवन काम किया. झारखण्ड के उत्थान में इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.

 

उन्होंने कहा कि डॉ मुंडा ने जब रांची विश्वविद्यालय में जनजातीय भाषा विभाग का कार्यभार संभाला उसके बाद राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय जगत पर यहां की भाषा-संस्कृति को पहचान मिली.

 

अलग राज्य की मांग के लिए इनके दिशा निर्देशानुसार साहित्यकारों रंगकर्मियों, कलाकारों ने जनता को जागरूक करने कि लिए भाषा, संस्कृति का उपयोग किया.

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