Ranchi : रांची विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में आज गुरुजनों के सम्मान में 'गुरु वंदन पर्व' का भव्य आयोजन किया गया. इस गरिमामयी कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो धर्मेंद्र कुमार सिंह ने की.
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सीसीडीसी, डीएसडब्ल्यू, इतिहास विभागाध्यक्ष एवं कुलसचिव सहित अनेक गणमान्य अधिकारी एवं शिक्षकगण उपस्थित रहे.
कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रगान और विश्वविद्यालय कुलगीत के साथ हुई जिसके पश्चात मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर विधिवत शुभारंभ किया गया.
स्वागत संबोधन में कुलपति प्रो धर्मेंद्र कुमार सिंह ने गुरु की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मैं महसूस करता हूं कि गुरु सबसे ऊपर है और जब गुरु सेवानिवृत्ति के बाद भी याद किए जाते हैं तो यह एक अत्यंत प्रेरणादायक बात होती है.
उन्होंने अपने बड़े भाई व गुरु मिथिलेश कुमार सिंह का स्मरण करते हुए बताया कि उन्होंने कहानियों के माध्यम से जीवन के गूढ़ संदेश दिए, जो आज भी प्रेरणा स्रोत हैं. उन्होंने नेल्सन मंडेला के प्रसिद्ध कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि किसी भी राष्ट्र को गिराना हो तो शिक्षा पद्धति को गिरा दो और उठाना हो तो शिक्षा ठीक कर दो.
साथ ही शिक्षकों से निवेदन किया कि वे सेवानिवृत्ति के बाद भी स्वेच्छा से शिक्षण में योगदान दें, ताकि नए छात्र उनके अनुभवों से लाभान्वित हो सकें. इसके पश्चात विश्वविद्यालय के संगीत विभाग द्वारा 'गुरु वंदना' पर एक भावपूर्ण गीत प्रस्तुत किया गया जिसने वातावरण को पूर्णतः भावमय कर दिया.
मुख्य कार्यक्रम में रांची विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए शिक्षकों को पुष्पगुच्छ, शॉल एवं स्मृति-चिह्न देकर सम्मानित किया गया. इस सम्मान समारोह ने उपस्थित जनों को भावुक कर दिया.
इसके बाद महिला सशक्तिकरण पर आधारित एक नृत्य-नाट्य की प्रस्तुति की गई, जिसमें भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के संघर्ष और महिलाओं को शिक्षित करने की यात्रा को अत्यंत प्रभावी ढंग से मंचित किया गया.
संगीत विभाग द्वारा राग भोपाली पर आधारित गीत प्रस्तुति ने दर्शकों को सुरों की मधुर यात्रा पर ले चल दिया. वहीं, कार्यक्रम का समापन 'आए न बलम वादा करके' नामक नाट्य प्रस्तुति से हुआ, जिसे फाइन आर्ट्स विभाग द्वारा मंचित किया गया. इस प्रस्तुति ने दर्शकों से भरपूर सराहना प्राप्त की. कार्यक्रम के अंत में कैंपस परिमल पुस्तिका का लोकार्पण हुआ.
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