New Delhi : राज्य की विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने को लेकर राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा निर्धारित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया. जान लें कि राष्ट्रपति की ओर से पूछा गया था कि क्या एक संवैधानिक अदालत इस मामले में दखल दे सकती है?
खबरों के अनुसार आज गुरुवार को CJI बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रमनाथ, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर की संविधान पीठ ने 19 अगस्त को इस संदर्भ पर सुनवाई शुरू की थी. सुनवाई पूरी होने के बाद आज फैसला सुरक्षित रख लिया गया.
जान लें कि सुनवाई के क्रम में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राष्ट्रपति संदर्भ का विरोध करने वाले विपक्ष शासित राज्य तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, पंजाब और हिमाचल प्रदेश की दलीलों का SC में विरोध किया. केरल और तमिलनाडु सरकारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल और कपिल सिब्बल ने राष्ट्रपति के संदर्भ का विरोध किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने खुद को संविधान का संरक्षक मानते हुए सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया कि अगर राज्यपाल अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता है, तो क्या अदालत चुप बैठ सकती है? इस क्रम में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान के मूल ढांचे के तहत शक्ति के बंटवारे को लेकर दलील दी.
उन्होंने कहा कि कोर्ट को राज्यपाल के विवेकाधीन अधिकारों में दखल नहीं देना चाहिए. इस पर सीजेआई ने कहा, चाहे कोई कितने ही ऊंचे पद पर बैठा हो, अगर लोकतंत्र का कोई एक स्तंभ अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहता है, तो क्या संविधान का संरक्षक चुप बैठा रहेगा?
तुषार मेहता ने इसका जवाब देते कहा कि केवल न्यायपालिका ही नहीं, कार्यपालिका और विधायिका भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों की संरक्षक हैं. यह भी कहा कि राज्यपाल को उनके सांविधानिक अधिकारों के तहत विवेक के आधार पर निर्णय लेने की अनुमति है. अदालत कोई जबरदस्ती नहीं कर सकती.
मामले की तह में जायें तो मई में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए कोर्ट से यह जानना चाहा था कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायिकआदेशों द्वारा समयसीमा निर्धारित की जा सकती है.
राष्ट्रपति ने 14 प्रश्न तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित विधेयकों से निपटने में राज्यपाल की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा आठ अप्रैल के दिये गये फैसले के बाद पूछे थे. राष्ट्रपति मुर्मू ने राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों से निपटने में अनुच्छेद 200 तथा 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर राय जाननी चाही है.
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