- राजनीतिक नेता नाम-निंदा और व्यक्तिगत आरोपों से बचें
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सम्मान करें
- सलवा जुडूम पर SC के फैसले को राजनीतिक दृष्टिकोण से जोड़ना गलत
Lagatar Desk : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी पर टिप्पणी की थी. शाह की इस टिप्पणी पर देश के 18 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के एक समूह ने आपत्ति जताई है.
रिटायर्ड जजों ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण, पूर्वाग्रह से भरी और न्यायिक फैसले की गलत व्याख्या करार दिया है. उन्होंने कहा कि एक वरिष्ठ राजनीतिक नेता द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले की इस तरह की टिप्पणी न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायाधीशों की निष्पक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है.
STORY | Unfortunate, prejudicial misinterpretation: Retired judges slam Shah's remarks on Oppn V-P pick
— Press Trust of India (@PTI_News) August 25, 2025
A group of retired judges has termed Home Minister Amit Shah's attack on opposition vice presidential candidate B Sudershan Reddy over the Salwa Judum judgement "unfortunate"… pic.twitter.com/AwYrXPJZrO
न्यायपालिका की गरिमा-निष्पक्षता बनाए रखना जरूरी
सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने कहा कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में विशेषकर न्यायपालिका की गरिमा और निष्पक्षता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है. उन्होंने कहा कि पूर्व न्यायाधीशों के नाम को सार्वजनिक रूप से इस प्रकार कलंकित करना न केवल अनुचित है, बल्कि इससे न्यायपालिका में विश्वास को भी आघात पहुंचता है.
सलवा जुडूम के फैसले को राजनीति दृष्टिकोण से जोड़ना गलत
न्यायाधीशों ने यह भी स्पष्ट किया कि सलवा जुडूम पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान और मानवाधिकारों की रक्षा के सिद्धांतों पर आधारित था और इसे किसी राजनीतिक दृष्टिकोण से जोड़ना उचित नहीं है.
नाम-निंदा व व्यक्तिगत आरोपों से बचें
उन्होंने राजनीतिक नेताओं से अपील की कि वे नाम-निंदा और व्यक्तिगत आरोपों से बचें और न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सम्मान करें. इस समूह में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर जैसे प्रतिष्ठित नाम शामिल हैं.
न्यायमूर्ति रेड्डी पर नक्सलवाद समर्थन का आरोप
गौरतलब है कि अमित शाह ने हाल ही में एक बयान में यह आरोप लगाया था कि न्यायमूर्ति रेड्डी ने 2011 के सलवा जुडूम फैसले के जरिए नक्सलवाद का समर्थन किया था. उन्होंने दावा किया कि यदि यह फैसला न आया होता, तो वामपंथी उग्रवाद 2020 तक समाप्त हो गया होता.
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