Ranchi : कल्याण विभाग से संचालित सभी आदिवासी हॉस्टल सरस्वती हरिजन बालिका छात्रावास आवास, दीपशिखा आदिवासी छात्रावास, भागरीरथ आदिवासी छात्रावास की छात्राएं शिबु के दर्शन करने पहुंची थी. इसके साथ ही साथ आररण लेडी दयामनी बरली भी पार्थिव शरीर का दर्शन करने पहुंचे है. इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा कि एक संकल्प के साथ महाजनी प्रथा बचाने का काम किया.
लूटेरों के हाथों से झारखंड को बचाया. तीर और कमान झारखंड वासियों को सौंपा. उनके संघर्ष को याद करते हुए आदिवासी समाज आगे बढ़ रहे हैं. इन्होंने अलग झारखंड के लिए लड़ाई लड़ा. भाषा संस्कृति, जल जंगल और जमीन को बचाने, आदिवासी मूलवासी को एकजुट करने के तीर धनुष को पकड़ा.
छोटानागपुर में तीसरे सबसे बड़े आंदोलनकारी शिबू सोरेन
झारखंड की धरती पर वीर सपूतों की कमी नहीं है. भगवान बिरसा मुंडा के बाद जयपाल सिंह मुंडा का जन्म हुआ, शिबू सोरेन ने छोटानागपुर को सींचने का काम किया है.
रामगढ़ के पारसुतिया गांव में आज भी कटहल पेड़ जिंदा है
रामगढ़ से पहुंचे एस्टेला लकड़ा, सुषमा बिरूली ने बताया कि आज भी रामगढ़ जिला परसुतिया गांव में विशाल कटहल पेड़ जिंदा है. यह वही पेड़ है जहां पर हमेशा झारखंड वासियों को एकजुट करने के लिए बैठक करते थे. जीतेंद्र मुंडा लोहरदगा के वर्तमान ऐसी से मिलने पहुंचते थे. जब भी इनसे मिलने पहुचते थे सादरी और नागपुरी भाषा में बातचीत करते थे. मुंडा क्षेत्र जाते थे, तो मुंडारी भाषा, संथाल परगना पहुंचते थे संथाली भाषा का उपयोग करते थे. बंगाल जाते थे बंगाली भाषा में लोगों से बातचीत करते थे.
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