Ranchi : झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूजे) के मानव विज्ञान और जनजातीय अध्ययन विभाग (डीएटीएस) ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर एक व्याख्यान का आयोजन किया. इस व्याख्यान का विषय था आदिवासी लोग और एआई: अधिकारों की रक्षा, भविष्य को आकार देना (Indigenous Peoples and AI: Defending Rights, Shaping Futures).
कार्यक्रम में स्कॉटलैंड के प्रमुख वक्ता टोलहीशेल खालिंग ने अपनी बात रखी. खालिंग का सत्र कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और स्वदेशी समुदायों के बीच तालमेल पर केंद्रित था. उन्होंने बताया कि कैसे उभरती तकनीकें स्वदेशी अधिकारों, संस्कृतियों और भविष्य के संरक्षण के लिए दोनों अवसर और चुनौतियां उत्पन्न कर सकती हैं.
उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि भारतीय सरकार भले ही आदिवासी संस्कृति के मूर्त पहलुओं पर ध्यान दे रही है जैसे कि धरती आबा जनभागीदारी अभियान लेकिन अमूर्त संस्कृति जैसे लोककथाएं खतरे में हैं. उन्होंने फ्रोजन फिल्म का उदाहरण दिया जिसमें सामी समुदाय की लोककथा को प्रस्तुत किया गया था जो संस्कृति के संरक्षण का एक अहम तरीका हो सकता है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो रवींद्रनाथ शर्मा, संस्कृति अध्ययन संकाय के डीन और मानव विज्ञान और जनजातीय अध्ययन विभाग के प्रमुख ने की. अन्य प्रमुख व्यक्तियों में राजकिशोर महतो (भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण), रांची फील्ड स्टेशन के प्रमुख डॉ सोमनाथ रुद्र, (भूगोल विभागाध्यक्ष, सीयूजे), डॉ रजनीकांत पांडे (सहायक प्राध्यापक, डीएटीएस), और टीएन कोइरेंग (सहायक प्राध्यापक, डीएटीएस) उपस्थित थे.
राजकिशोर महतो ने लेवी स्ट्रॉस प्रसिद्ध मानवविज्ञानी और समाजिक संरचना के विचारक का उल्लेख करते हुए कहा कि लोक कथाओं और लोकगीतों पर आधारित समाज की संरचना की समझ, समाज और संस्कृति के अध्ययन के लिए अहम है. डॉ सोमनाथ रुद्र ने एआई के माध्यम से जनजातीय अध्ययन, संस्कृति और भाषाओं के संरक्षण की संभावनाओं पर विचार प्रस्तुत किया.
इस कार्यक्रम का उद्देश्य विद्वानों, छात्रों और समुदाय के बीच संवाद को बढ़ावा देना था. साथ ही डिजिटल युग में स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों के संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालना था.
Leave a Comment