New Delhi : देश के 12 राज्यों में जारी गहन वोटर पुनरीक्षण (एसआईआर) को सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल रोकने से इनकार कर दिया है. विपक्ष की गुहार SC ने नहीं सुनी. दरअसल चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्पष्ट कहा कि चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है. एसआईआर कराने के चुनाव आयोग के अधिकारों को चुनौती नहीं दी जा सकती.
आयोग के पास ऐसा करने का संवैधानिक और कानूनी अधिकार है. इसके बाद SC ने एसआईआर प्रक्रिया को रोकने से मना कर दिया. हालांकि कहा कि अगर एसआईआर प्रक्रिया में किसी भी तरह की अनियमितता पायी गयी तो वह (सुप्रीम कोर्ट) तुरंत सुधार करने का आदेश जारी करेगा.
चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने राजद सांसद मनोज झा की याचिका पर सुनवाई करने के क्रम में कहा, आपके तर्कों में कोई दम नहीं है. सीजेआई ने अपने पिछले निर्देश का हवाला देते हुए कहा कि चुनाव आयोग ने प्रक्रिया में सुधार किया था. उसके बाद एक भी औपचारिक आपत्ति सामने नहीं आयी.
बता दें कि मनोज झा ने अपनी याचिका में एसआईआर को लोगों के नाम काटने और मताधिकार से वंचित करने की सुनियोजित साजिश करार दिया था. कोर्ट ने कहा, अभी तक हमारे समक्ष कोई ऐसा सबूत पेश नहीं किया गया है, जिससे साबित हो कि एसआईआर प्रक्रिया गलत है.
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एसआईआर की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया था.. कहा कि देश में लाखों-करोड़ों लोग निरक्षर है, वे फॉर्म नहीं भरने में सक्षम नहीं हैं. आरोप लगाया कि मतदाता गणना फॉर्म भरवाना लोगों को सूची से बाहर निकालने का हथियार बन गया है.
चुनाव आयोग के अधिकारों को चुनौती देते हुए सिब्बल ने कहा कि मतदाताओं को गणना फॉर्म भरने के लिए क्यों कहा जा रहा है? कहा कि चुनाव आयोग को यह तय करने का अधिकार किसने दे दिया कि कोई भारतीय नागरिक है या नहीं? दलील दी कि 18 साल से ऊपर का कोई व्यक्ति यदि यह घोषणा करता है कि वह भारतीय नागरिक है तो उसे मतदाता सूची में शामिल करना चाहिए.
कोर्ट ने टिप्पणी की कि मतदाता सूची को सही और अपडेट रखना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है और इसके लिए वह जरूरी कदम उठा सकता है. इसे रोकने का कोई ठोस आधार नहीं है. हालांकि कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी
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