New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने आज जस्टिस वर्मा की याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. जस्टिस वर्मा ने आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की कार्रवाई को चुनौती दी थी.
जस्टिस वर्मा की ओर दायर याचिका पर बुधवार को न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायाधीश एजी मसीह की पीठ में आज फिर सुनवाई हुई. सुनवाई के बाद न्यायालय ने अपने फैसला सुरक्षित रख लिया. हालांकि सुनवाई के दौरान न्यायालय ने गंभीर टिप्पणी की.
न्यायालय ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश सिर्फ पोस्ट ऑफिस नहीं है. न्यायालय का प्रमुख होने की वजह से उनकी कुछ जिम्मेवारियां हैं. अगर उनके सामने कोई तथ्य आता है तो राष्ट्रपति और प्रधानंत्री के पास इसे भेजना मुख्य न्यायाधीश का कर्तव्य है.
जस्टिस वर्मा का पक्ष पेश करते हुए वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि आंतरिक समिति की जांच के आधार पर किसी जज को नहीं हटाया जा सकता है. अगर आंतरिक जांच के आधार पर किसी जज को पद से हटाया जाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 124 का उल्लंघन है. मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गयी अनुशंसा सदन के क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप है.
जस्टिस दत्ता ने इस बिंदु पर हस्तक्षेप करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 141 में निहित प्रावधानों के आलोक में आंतरिक जांच समिति का प्रावधान सुप्रीम कोर्ट ने किया है. अगर जस्टिस वर्मा को यह लगता है कि आंतरिक जांच समिति का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है तो उन्होंने उसी वक्त इस मुद्दे के चुनौती क्यों नहीं दी थी. उन्होंने किस बात का इंतजार किया और समिति की कार्यवाही में हिस्सा लिया.
उल्लेखनीय है कि जस्टिस वर्मा के स्टोर रूम में आग लगने के दौरान भारी मात्रा में जले हुए नोट पाये गये थे. मामले की गंभीतरा को देखते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने आंतरिक जांच समिति का गठन किया था. जांच समिति की रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों के आलोक में उन्होंने जस्टिस वर्मा के मामले में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुशंसा की.
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