Ranchi : कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने कहा है कि आजादी के समय यदि भाजपा का शासन होता तो पिछड़ा दलित आदिवासी और वंचित समाज के लिए संविधान में आरक्षण और उनके मूल अधिकार का समावेश नहीं होता. वे शनिवार को कांग्रेस भवन में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार पर झारखंड में आरक्षण में वृद्धि संबंधित विधेयक को लटकाने का आरोप लगाया.
झारखंड में 55 फीसदी आबादी पिछड़ों की
झारखंड में लगभग 55 फीसदी पूरे देश में 52 फीसदी आबादी पिछड़ों की है. संविधान में भी स्पष्ट रूप से पिछड़ों को शैक्षणिक आर्थिक सामाजिक रूप से संबल बनाने के लिए आरक्षण का प्रावधान है. उन्होंने कहा कि 50 फीसदी आरक्षण के बैरिकेडिंग को हटाया जाए, 50 फीसदी की लक्ष्मण रेखा को मिटाना होगा. 1993 में तमिलनाडु की सरकार ने 50 फीसदी की आरक्षण सीमा को तोड़ते हुए 69 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की.
नरसिम्हा राव सरकार का दिया हवाला
केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस की सरकार ने 1994 में 76वां संविधान संशोधन करके उसे नौंवी अनुसूची में डाला और उसे कानून का रूप दिया. आज 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण को मिलाकर तमिलनाडु में 79% आरक्षण है. उन्होंने केंद्र सरकार से सवाल किया कि जब भारत सरकार 50% आरक्षण सीमा को तोड़कर ईडब्ल्यूएस को आरक्षण दे सकती है तो जिसकी आबादी 50 से 60% के बीच है, उसके लिए सीमा क्यों नहीं तोड़ी जा सकती,कानून में संशोधन क्यों नहीं किया जा सकता है. अभी कई राज्यों ने जिसमें झारखंड सहित कर्नाटक, हरियाणा, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ ने अपने विधानसभा से इस सीमा को तोड़ने का प्रयास किया है, भारत सरकार इस पर चुप्पी साध कर बैठी है,
केंद्र सरकार कुंडली मारकर बैठी है
झारखंड में आदिवासी के लिए 28 दलितों के लिए 12 और पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण की व्यवस्था की अनुशंसा है. ईडब्ल्यूएस के 10% को मिलाकर यह 77% होता है, जिसपर भारत सरकार कुंडली मारकर बैठी है, इसके लिए हमारे संघर्ष की पहली लड़ाई राजभवन के सामने ओबीसी विभाग की अगुवाई में 6 अगस्त को 11:30 बजे से महा धरना एवं प्रदर्शन के माध्यम से शुरू होगी. जिसमें पूरी कांग्रेस शामिल होगी. निजीकरण और आउटसोर्सिंग के माध्यम से हमारी हिस्सेदारी समाप्त की जा रही है, हम उसका भी विरोध करते हैं आवश्यकता पड़ी तो हम यह लड़ाई दिल्ली तक लड़ेंगे.
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