Ranchi: मेन रोड स्थित जीईएल चर्च का उद्घाटन 24 दिसंबर 1855 को क्रिसमस की पूर्व संध्या पर शाम 4:30 बजे धार्मिक विधि-विधान और संस्कार के साथ किया गया था. यह परंपरा आज भी उसी श्रद्धा और अनुशासन के साथ निभाई जा रही है. चर्च की स्थापना के समय बाइबल के साक्षी वचनों के साथ विशेष विनती की गई थी, जो आज भी इसकी पहचान बनी हुई है.
1851 में हुआ था शिलान्यास
जीईएल चर्च का शिलान्यास 18 नवंबर 1851 को किया गया था. मात्र चार वर्षों की अवधि में यह चर्च बनकर तैयार हो गया. झारखंड का यह चर्च न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि इसे राज्य का पहला चर्च भी माना जाता है.
गोथिक शैली में बनाया गया है चर्च
गोथिक शैली में चर्च को बनाया गया है. जीईएल चर्च अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है. इस चर्च के निर्माण में सीमेंट और बालू का बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया गया है. पूरा ढांचा छोटानागपुर क्षेत्र के पत्थरों से बनाया गया है. चर्च हॉल में लगभग 800 श्रद्धालुओं के बैठने की व्यवस्था है और आज भी यहां की पुरानी लकड़ी की कुर्सियां सुरक्षित हैं, जो इसकी विरासत को जीवंत रखती हैं.
13 हजार रुपये में बना था चर्च
जर्मनी से फादर गोस्नर ने इस चर्च के निर्माण के लिए मात्र 13 हजार रुपये भेजे थे.सीमित संसाधनों के बावजूद यह चर्च अपने समय की एक अद्भुत संरचना बनकर उभरा है .आम लोग इस चर्च को मुड़ला चर्च के नाम से भी जानते हैं, क्योंकि इसकी बनावट में पारंपरिक चर्चों की तरह ऊंची चोटी (स्पायर) नहीं बनाई गई है.
चार लोगों से शुरू हुई, आज चार लाख विश्वासी
जीईएल चर्च की शुरुआत सिर्फ चार लोगों से हुई थी, लेकिन आज इससे जुड़ी आस्था और विश्वास की संख्या बढ़कर लगभग चार लाख तक पहुंच चुकी है. जर्मनी से आए लोग उस समय मिशनरी कहलाते थे और उनके द्वारा विकसित ईसाई समुदाय को मिशन स्टेशन के रूप में जाना जाता है.
आस्था, इतिहास और परंपरा का जीवंत प्रतीक है जीईएल चर्च
जीईएल चर्च आज रांची का गौरव बन चुका है. झारखंड में ईसाई धर्म, आस्था और सांस्कृतिक विरासत के जीवंत को दर्शा रहा है,जो विश्वासियों के लिए प्रतीक बना हुआ है. हर वर्ष क्रिसमस की पूर्व संध्या पर यहां विशेष आराधना होती है. जो इस धरोहर को नई पीढ़ी से जोड़ने का काम कर रही है.
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