Ranchi : मोरहाबादी मैदान में झारखंडी संस्कृति और परंपरा के रंग में रंग गया. बृहद झारखंड कला संस्कृति मंच के तत्वावधान में डहरे सोहराई पर्व पूरे उल्लास और पारंपरिक ढंग से मनाया गया. यह पर्व मोरहाबादी से शुरू की गई.
युवाओं के हाथों में तख्तियां थी. जिसमें कृषि से संबंधित तस्वीरें थी. इसके साथ ही किसान और दो बैलों की प्रतिकात्मक दिखाई गई. लोगों ने बताया यह पर्व जुलुस के शक्ल में मोरहाबादी से जयपाल सिंह मुंडा स्टेडियम जाएगी.
कलाकारों ने नगाड़ा और ढाक बजाकर सबको मोहा
झंकार पार्टी के कलाकार घनश्याम मिर्धा, बिसेंदर नायक, कृष्णा लोहरा, शहनाई वादक विश्वनाथ मिर्धा, तासा वादक सुरेश महतो और धर्मेंद्र कालिंदी ने नगाड़ा और ढाक की थाप पर ऐसा समां बांधा कि पूरा मैदान झूम उठा.
कार्यक्रम में रांची, बोकारो, रामगढ़, तमाड़ सहित कई जिलों से लोग पहुंचे. आयोजकों ने बताया कि बाहरी जनसंख्या बढ़ने से झारखंड की संस्कृति धीरे-धीरे मिटती जा रही है, इसलिए गांव की परंपरा और संस्कृति को शहर में लाने का प्रयास किया गया है.
कुड़मी समाज के लोगों ने कहा कि शहर की चकाचौंध में युवा पीढ़ी खेती-किसानी से जुड़े औजार, पशु और उनसे जुड़े पर्व-त्योहारों को भूलती जा रही है. इसी परंपरा को जीवित रखने और नई पीढ़ी को उसकी जड़ों से जोड़ने के लिए यह आयोजन किया गया.
क्या है डहरे सोहराई पर्व
रांची विश्वविद्यालय की छात्रा अर्चना कुमारी ने बताया कि डहरे सोहराई तीन दिन तक चलने वाला कृषि पर्व है.
पहला दिन -कच्चा दीया जलाया जाता है
दूसरा दिन -गोराईया होती है.
जिसमें पशुओं की पूजा की जाती है. इसमें महुआ डाली, पीठा, सलुख फूल के साथ काले और भूरे रंग के मुर्गे की बली दी जाती है.
तीसरा दिन - गोरू भिड़का, जिसमें पशुओं को दाना खिलाया जाता है और उनके प्रति कृतज्ञता जताई जाती है.
कार्यक्रम में कुड़मी नेता शीतल ओहदार,कुड़मी विकास मोर्चा रांची जिलाध्यक्ष सोनालाल महतो, काजल महतो, प्रकाश चौधरी, लबु महतो, राजकुमार महतो, बसंत चौधरी समेत कई समाजसेवी और विद्यार्थी उपस्थित थे
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