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प्रकृति के साथ जीने वाले आदिवासी समुदाय अपनी ही भूमि से हो रहे है विस्थापित

Ranchi : डॉ. रामदयाल मुंडा शोध संस्थान (टीआरआई) में जारी तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नीति निर्धारण सम्मेलन का दूसरा दिन भी जारी रहा. इमसें आदिवासी समुदाय की भविष्य-रेखा तय करने वाले विचार-विमर्श किए गए. 

 

विभिन्न राज्यों से आए प्रतिनिधियों को नौ अलग-अलग समूहों में बांटकर नीति निर्धारण के प्रमुख विषयों पर विस्तृत चर्चा कराई गई. सम्मेलन में आदिवासियों के संविधान से प्राप्त अधिकारों पर चर्चा किए गए.

 

सम्मेलन में आदिवासी समाज, सांस्कृतिक विरासत, पहचान, आर्थिक सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता, पांचवीं और छटवीं अनुसूची क्षेत्र में प्रशासनिक व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ सेवाएं, युवा विकास एवं खेलकूद, प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन, आदिवासी महिलाओं एवं अन्य विषयों पर गहन विमर्श एवं परिचर्चा हुई.

 

इस दौरान कहा गया कि विश्व में असमानताएं दूर हों और हर इंसान गरिमापूर्ण जीवन जी सके. ऐसे राष्ट्रीय और वैश्विक माहौल में भी देश और दुनिया में दिन-ब-दिन असमानताएं बढ़ रही हैं. प्राकृतिक संसाधन कम हो रहे हैं.

 

प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीने वाला आदिवासी समुदाय अपनी ही भूमि से विस्थापित हो रहा है. वे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. आदिवासी समाज एवं प्रकृति की कीमत पर पर्यावरण संकट भी गहराता जा रहा है. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिए गए अधिकारों को लागू करके, प्रकृति को सभी के लिए कैसे बचाया जाए पर भी विचार विमर्श किया गया.

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