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जीईएल चर्च में तीन स्मारक स्तंभ आज भी सुनाते हैं इतिहास की कहानी

Ranchi : गोस्सनर इवेंजेलिकल लूथरन (जीईएल) चर्च परिसर में स्थापित तीन स्मारक स्तंभ बनाए गए है. जो आज भी झारखंड में ईसाई धर्म के प्रारंभिक इतिहास को बयां कर रही है.

 

ये स्मारक धर्म प्रचार की शुरुआत को दर्शाती है. इसके साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा के याद भी दिलाते हैं. जिसने आदिवासी समाज को नई दिशा दी.


17 अक्टूबर 1963 को मुंडारी भाषा में बाइबिल अनुवाद

17 अक्टूबर 1963 को जर्मन निवासी डॉ. अल्फ्रेड नोटरोत, डॉ. के. डब्ल्यू.एस. केनेडी एवं एस. केनेडी ने अंग्रेजी और जर्मन भाषा में लिखित बाइबिल का पहली बार मुंडारी भाषा में अनुवाद किया. इस स्मृति में जीईएल चर्च परिसर में अनुवाद से संबंधित स्मारक पत्थर आज भी स्थापित हैं.

 

दो स्मारक पत्थरों में दर्ज है बपतिस्मा का इतिहास

जीईएल चर्च परिसर में स्थापित तीन स्मारक पत्थरों पर मुंडा, उरांव और खड़िया समाज के लोगों के बपतिस्मा का उल्लेख अंकित है. 9 जून 1950 को उरांव समाज के पाहन नवीन डोमन तिर्की, केसो भगत, बंधु उरांव और घुरन उरांव शामिल है.

 

वहीं, 8 जून 1966 को खड़िया समाज से मंगरू खड़िया कालो, बंधु खड़िया कालो और फाड़सिम कुम्हारी ने बपतिस्मा ग्रहण किया. इन सभी घटनाओं को स्मारक पत्थरों पर आज भी सुरक्षित रखा गया है.


2 नवंबर 1845 में ईसाई मिशन की शुरुआत

2 नवंबर 1845 को फादर योहान्नेस एवेंजेलिस्टा गोस्सनर के मार्गदर्शन में जर्मनी से चार पाद्रियों आये थे. जिनमें पाद्री एमिल शत्स, फ्रेडरिक वत्स, औगुस्तुस ब्रान्त और थियोडोर यानके शामिल है. पहली बार रांची की धरती पर कदम रखा था.

 

ये सभी बेथेस्दा स्थित प्रेयर टावर के सामने टेंट लगाकर रहने लगे. यहीं से सुसमाचार प्रचार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं की नींव रखी गई. इसी दिन गोस्सनर इवेंजेलिकल लूथरन चर्च की स्थापना हुई.

 

प्रेयर स्थल पर हुआ पहला बपतिस्मा अनाथ बालिका मार्था का बपतिस्मा हुआ, जिसे जीईएल चर्च के इतिहास में महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है.

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