- 20 सितंबर को राजभवन घेराव, 17 अक्टूबर को डीसी ऑफिस पर प्रदर्शन
Ranchi : झारखंड में कुड़मी समाज की एसटी सूची में शामिल करने की मांग को लेकर आदिवासी संगठनों और नेताओं का विरोध तेज हो गया है. सोमवार को सिरम टोली सरना स्थल और केंद्रीय धुमकुड़िया भवन में अलग-अलग मंचों से आदिवासी संगठनों ने साफ कहा कि कुड़मी, कुरमी और महतो कभी भी आदिवासी नहीं थे, और इनकी एसटी मांग को किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जाएगा.
पूर्व मंत्री देवकुमार धान, पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव, चंपा कुजूर, प्रेम शाही मुंडा, बलकु उरांव, प्रदीप उरांव, पवन तिर्की और आकाश तिर्की ने कहा कि कुड़मी नेताओं ने आदिवासी समाज को भटकाने और दोनों समाज के बीच खाई पैदा करने का काम किया है. उनका मकसद सिर्फ विधायक, सांसद और मंत्री बनने के लिए आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकारों पर कब्जा करना है.
रेल रोको आंदोलन पर सवाल
गीताश्री उरांव ने पांच दिन तक चले कुड़मी समाज के रेल रोको आंदोलन पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतना बड़ा आंदोलन हुआ, लेकिन एक भी केस दर्ज नहीं हुआ. कुड़मी समाज खुद को शिवाजी महाराज का वंशज और मराठा साम्राज्य से जुड़ा बताते हैं, ऐसे में उन्हें आदिवासी दर्जा नहीं दिया जा सकता.
आदिवासी अधिकारों पर कब्जा बर्दाश्त नहीं
नेताओं ने कहा कि संविधान ने आदिवासी समाज को जो अधिकार दिए हैं, उस पर किसी भी कीमत पर कब्जा नहीं होने दिया जाएगा. रजिस्ट्रार जनरल पहले ही कुड़मी समाज की एसटी मांग को खारिज कर चुके है. देवकुमार धान ने कहा कि रघुवर सरकार के समय भी ऐसे संकेत मिले थे, लेकिन अब आदिवासी समाज चुप नहीं बैठेगा.
जमीन और अस्तित्व की लड़ाई तेज होगी
नेताओं ने चेतावनी दी कि आदिवासी समाज की धार्मिक और रैयती जमीन लगातार छीनी जा रही है. उद्योग, डैम और रिम्स-2 खोलने के नाम पर बड़े पैमाने पर विस्थापन हो चुका है. अब समाज बर्दाश्त नहीं करेगा.
प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि जेएलकेएम पार्टी अब पूरी तरह कुड़मी समाज की पार्टी बन चुकी है. कुड़मी नेताओं को आदिवासी बनने की जिद छोड़कर झारखंड के विकास के लिए मिलकर काम करना चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया कि सबसे ज्यादा जमीन लूटने वाला समाज आज खुद को आदिवासी बताकर भ्रम फैला रहा है.
कुड़मी/कुरमी और महतो एक ही हैं
प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय सरना समिति के महिला अध्यक्ष निशा भगत ने कहा कि भारत में आदिवासी प्रथम नागरिक हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हजारों कुर्बानियां दीं. मगर आज राजनीतिक स्वार्थ के लिए आदिवासी समाज को भटकाया जा रहा है. कुड़मी, कुरमी और महतो तीनों एक ही हैं, कभी भी आदिवासी नहीं थे. यदि इन्हें आदिवासी दर्जा दिया गया तो पूरे देश में आदिवासी अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.
आंदोलन की रूपरेखा तय
- 20 सितंबर को राजभवन के समक्ष एक दिवसीय धरना दिया जाएगा.
- 17 अक्टूबर को जिला उपायुक्त कार्यालय का घेराव कर आदिवासी जमीन लूट और विस्थापन के खिलाफ आंदोलन किया जाएगा.
मौजूद रहे ये चेहरे
इस मौके पर केंद्रीय सरना समिति महासचिव संजय तिर्की, हर्षिता मुंडा, निशा भगत, फूलचंद तिर्की, कुंदरसी मुंडा, निरंजना हेरेंज, डबलु मुंडा, लक्ष्मी नारायण मुंडा समेत कई आदिवासी नेता उपस्थित रहे.
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