Ranchi: डॉ.रामदयाल मुंडा शोध संस्थान (टीआरआई) में शुक्रवार से राष्ट्रीय आदिवासी नीति निर्धारण विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला की शुरुआत हुई. टीआरआई और आदिवासी समन्वय समिति द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन में देशभर के 25 राज्यों से आदिवासी प्रतिनिधि शामिल हुए हैं. महाराष्ट्र,राजस्थान,गुजरात मध्य प्रदेश, झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल, लद्दाख और अंडमान-निकोबार समेत विभिन्न राज्यों के वक्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्रों की चुनौतियां सामने रखीं.
लद्दाख से आए प्रतिनिधि रिकचिंग ने कहा कि लद्दाख में 97 प्रतिशत आबादी आदिवासी है. लेकिन तेजी से पिघलते ग्लेशियर उनके जीवन, संस्कृति और अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा बन गए हैं. उन्होंने कहा कि पर्यावरण संकट से निपटने और अपनी भाषा-संस्कृति को बचाने के लिए लद्दाख के आदिवासी लगातार आंदोलन कर रहे हैं.
अंडमान-निकोबार के जोची विसेंट ने देशभर के आदिवासी समुदायों से एकजुट होकर समस्याओं पर सामूहिक वार्ता की जरूरत पर जोर दिया. वहीं असम के प्रतिनिधि बिरसा मुंडा ने बताया कि असम की 108 जनजातियों में झारखंड से पलायन कर पहुंचे आदिवासियों को अब भी एसटी दर्जा और भूमि का पट्टा नहीं मिल रहा, जिससे उनके मालिकाना अधिकार प्रभावित हो रहे हैं.
राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन के अध्यक्ष विश्वनाथ तिर्की ने कहा कि संविधान में आदिवासियों को मिले अधिकारों का वास्तविक पालन हो रहा है या नहीं- इस महत्वपूर्ण विषय पर विचार के लिए देशभर के आदिवासी समुदाय के लोग जुटे हैं. उन्होंने कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के जीवन स्तर को मजबूत बनाने को लेकर कार्यशाला में ठोस रणनीतियों पर चर्चा की जाएगी.
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