Ranchi : झारखंड में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. आदिवासी और दलित परिवार धीरे-धीरे इस योजना से दूर होते जा रहे हैं. मजदूरों का कहना है कि मजदूरी का भुगतान समय पर न होने और योजना की स्वीकृति में आने वाली कठिनाइयों के कारण लोग अब काम करने से कतराने लगे हैं. साथ ही सामग्री मद में भुगतान की देरी से भी आदिवासी-दलित परिवारों पर अनावश्यक दबाव बना रहता है.

सरकारी मनरेगा वेबसाइट के अनुसार, वर्ष 2015-16 में कुल सृजित रोजगार में आदिवासी और दलित मजदूरों की हिस्सेदारी 51.02% थी. यह लगातार घटते-घटते वित्तीय वर्ष 2025-26 में मात्र 32.14% रह गई है.
| वर्ष | घटती हिस्सेदारी |
| 2015-16 | 51.02% |
| 2016-17 | 44.46% |
| 2017-18 |
39.73% |
| 2018-19 |
37.90% |
| 2019-20 |
35.79% |
| 2020-21 |
34.12% |
| 2021-22 |
33.04% |
| 2022-23 |
33.38% |
| 2023-24 |
32.18% |
| 2024-25 |
31.14% |
| 2025-26 |
32.14% |
गिरावट के मुख्य कारण
बिचौलियों की पकड़ : मनरेगा में काम कराने वाले मेट या बिचौलिये अधिकतर गैर-आदिवासी और गैर-दलित समुदाय से होते हैं. मस्टर रोल में उन्हीं के नाम दर्ज कर दिए जाते हैं, जबकि कई बार काम वास्तव में होता ही नहीं.
भुगतान में देरी और अनियमितता: मजदूरों को समय पर पूरा भुगतान न मिलना, उनकी भागीदारी घटा रहा है.
बजट और आवंटन की समस्या: पर्याप्त बजट और श्रेणीकृत आवंटन न होने से कमजोर वर्ग प्रभावित हो रहा है.
भ्रष्टाचार का नया पैटर्न: फर्जी नाम डालकर बिना काम किए ही भुगतान निकाल लेना आम बात बन चुकी है.
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