Ranchi: झारखंड पुलिस के लिए सुरक्षा उपकरणों की खरीद में घोटाले के आरोपों की जांच अब तक शुरु नहीं हुई है. जबकि सरकार के स्तर से महीनों पहले डीजीपी को पत्र लिख करके जांच रिपोर्ट की मांग की गई. गृह विभाग की तरफ से पुलिस मुख्यालय को रिमाइंडर भी दिया गया. लेकिन अब तक जांच शुरु नहीं हुई है.
जानकारी के मुताबिक आईजी रैंक के अधिकारी ने विसिल ब्लोअर एक्ट के तहत जो जानकारी पुलिस मुख्यालय और सरकार को दिए हैं, उसमें कई गंभीर आरोप हैं. साथ ही कुछ अनुशसाएं भी की गई हैं.
व्ह्सिल ब्लोअर एक्ट के तहत आईजी आईजी रैंक के अफसर की शिकायत मिलने के बाद सरकार के स्तर से तत्कालीन डीजीपी अजय कुमार सिंह को एक पत्र लिखा गया था. पत्र में सरकार ने पूरे मामले पर रिपोर्ट मांगी. तत्कालीन डीजीपी ने आईजी के पत्र को तत्कालीन डीजी मुख्यालय आरके मल्लिक को भेजा और पूरे मामले पर रिपोर्ट मांगी. तत्कालीन डीजी मुख्यालय 31 जनवरी को सेवानिवृत हो गए.
घोटाले के सिलसिले में लगे प्रमुख आरोप
- सुरक्षा उपकरणों की सप्लाई करने वाली कंपनियों अरिहंत ट्रेडिंग, कपरी कॉर्प, लाइफ लाईन समेत अन्य कंपनियों ने कार्टेल बना रखा है.
- कई कंपनियों के मालिकों के बीच व्यापारिक पार्टनरशीप है.
- कंपनियों ने 2 से 4 गुणा अधिक कीमत पर सुरक्षा उपकरणों की सप्लाई की.
- कंपनियों से तीन लोगों से विकास राणा के संबंध हैं, प्रीतम कुमार व राहुल कुमार भी संदेह के घेरे में है.
- ज्यादा कीमत पर सुरक्षा उपकरणों की खरीद में सीनियर अफसरों की संलिप्तता या लापरवाही भी हो सकती है.
- पिछले तीन सालों के भीतर हुए सुरक्षा उपकरणों की खरीद की जांच की जाये.
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सेवानिवृत्त होने से पहले तत्कालीन डीजी मुख्यालय आरके मल्लिक ने डीजीपी अनुराग गुप्ता को एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें उन्होंने यह लिखा कि गंभीर आरोप लगे हैं. खरीददारी से जुड़े कई मामलों में आरोप हैं. किसी एक अधिकारी के लिए पूरे मामले की जांच कराना संभव नहीं होगा. इसलिए इस मामले में किसी तरह की रिपोर्ट सरकार को भेजने से पहले एक कमेटी बनाकर पूरे मामले की जांच की जाये. ताकि सरकार को सही रिपोर्ट भेजी जा सके.
तत्कालीन डीजी श्री मल्लिक की टिप्पणी के बाद से यह फाइल ठहर गया है. जांच के लिए अभी तक कोई कमेटी बनाये जाने की सूचना सार्वजनिक नहीं है. पिछले चार माह से यही स्थिति है. ऐसे में जांच शुरु होने का सवाल ही गौन हो जाता है.
यह स्थिति तब है जब कि अलग-अलग फाइलों को पढ़ने से यह साफ दिख रहा है कि सुरक्षा उपकरणों की सप्लाई के बदले कंपनियों को करोड़ों रुपये का अधिक का भुगतान किया गया. यह अलग बात है कि सप्लाई का ऑर्डर उन्हें टेंडर प्रक्रिया के तहत ही दिया गया है.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि 2 से 4 गुणा की कीमत पर सुरक्षा उपकरणों को खरीदे जाने के लिए जिम्मेदार कौन है. क्या यह सिर्फ लापरवाही या अनजाने में हुआ या फिर कंपनियों ने आपस में कार्टेल बनाकर किया. कहीं ऐसा तो नहीं कि कंपनियों को मुख्यालय के किन्हीं अफसर या कर्मियों का साथ मिला हुआ था. इस लूट की छूट में कौन-कौन शामिल है. बिना जांच के इन सवालों का जवाब शायद कभी किसी को पता ना चले.