Surjit Singh
किसी भी घर में जाकर पूछ लीजिये. कहेंगे- कम खरीद रहे हैं. हाथ खाली है. मुट्ठी बांध कर खर्च कर रहे हैं. किसी भी दुकान में जाकर पूछ लीजिये. कहेंगे- बिक्री की वाट लगी हुई है. लोग कम खर्च कम कर रहे हैं. बिक्री कम हो गई है. बाजार खराब है.
खुद से सवाल करिये- क्या आपने मई महीने में पिछले साल के मुकाबले ज्यादा खरीददारी कर ली. क्या आपके पड़ोसी ज्यादा खरीददारी करने लगे हैं. दोनों सवालों के जवाब यही मिलेंगे- नहीं. सबकी हालत खराब है. सबसे बुरा हाल मीडिल क्लास का है. आमदनी बढ़ नहीं रहा, फिर खर्च कहां से करें.
और अब मई 2025 का जीएसटी कलेक्शन का सरकारी आंकड़ा देख लीजिये. 2.01 लाख करोड़ रुपया. यह पिछले साल मई 2024 के 1.72 लाख करोड़ के मुकाबले 16.7 प्रतिशत अधिक है. हालांकि मई 2025 की जीएसटी वसूली अप्रैल 2025 में हुए 2.37 लाख करोड़ से कम है.
आरबीआई का एक और आंकड़ा है. कंपनियां कर्ज कम ले रही हैं. कंपनियों के कर्ज लेने का ग्रोथ गिरते-गिरते 6.7 प्रतिशत पर आ गया है. कंपनियों द्वारा कर्ज नहीं लेने की वजह उत्पादन का काम होना है. उत्पादन बढ़ाने में उनकी दिलचस्पी नहीं है. क्योंकि बाजार में डिमांड नहीं है.
अब खुद से सवाल पूछिये, जब लोगों की आमदनी बढ़ी नहीं, कंपनियों के माल कम बिक रहे हैं. बाजार में उदासी है, तो फिर जीएसटी में सरकार को मिलने वाला टैक्स कैसे बढ़ रहा है. इसका जवाब है- महंगाई बढ़ गया. सरकार इसे रोकने में फेल हो गई.
विश्वास नहीं हो तो अपने आसपास के दुकानों में जाकर पूछ लीजिये. कोई भी सामान, पिछले साल किस कीमत पर बिक रहा था और इस साल उसकी क्या कीमत है. या तो कीमत में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी मिलेगी या फिर सामना का वजन 15-20 प्रतिशत कम करके दाम को स्थित बताने की कोशिश की गई होगी.
जीएसटी में सरकार को रिकॉर्ड टैक्स मिलना, यह बताता है कि पहले के मुकाबले आम लोगों को अब ज्यादा टैक्स देना पड़ रहा है. आम लोग परेशान हैं और सरकार इसे उपलब्धि बताने में संकोच नहीं करती. क्योंकि धार्मिक उन्माद में फंसे लोगों ने महंगाई पर सोचना, बोलना और सवाल करना ही बंद कर दिया है.