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स्मृतिशेष निर्मल मिंज ने झारखंडी चेतना को नया स्वर प्रदान किया

FAISAL ANURAG

झारखंडी चेतना और आदिवासी सामाजिकता के प्रतीक निर्मल मिंज एक आरगेनिक दार्शनिक थे. शिक्षाविद् के रूप में उनके योगदान जितने अभूतपूर्व और मौलिक हैं उतना ही झारखंड की राजनीतिक चेतना के निर्माण में उनकी सक्रियता. जब देश भर में झारखंड आंदोलन को केवल संसदीय राजनीतिक कामयाबियों और नाकामयाबियों की कसौटी पर आकलन किया जा रहा था. निर्मल मिंज ने देश दुनिया को आदिवासी राजनीति के मूल्यबोध का परिचय कराया. इस मानक पर वे शायद इकलौते आदिवासी बुद्धिजीवी हैं जिसने साहस के साथ प्रचलित अवधारणों का खंडन करते हुए आदिवासी अस्मिता के प्रगतिशील पहलू को बहस के केंद्र में ला खड़ा किया.

मरांग गोमके जयपाल सिंह के बाद जब झारखंड को एक बौद्धिक चेतना की जरूरत थी. निर्मल मिंज ने उस कमी को न केवल पूरा किया बल्कि नए आयाम भी स्थापित किए. निर्मल मिंज ने डॉ. रामदयाल मुंडा, बीपी केसरी और साहित्य के अनेक लोगों के लिए एक ऐसा आधार तैयार किया जिस पर झारखंड आंदोलन के उस दौर को ताकत मिली जो जयपाल सिंह के बाद का है.

डॉ. निर्मल मिंज की बतौर शिक्षाविद जो पहचान है उसे भी कम ही लोग जानते हैं. गोस्सनर कॉलेज को जिस तरह डा. मिंज ने आदिवासी और झारखंडी भाषाओं के नवजागरण का केंद्र बनाया उसकी मिसाल देश में कम ही मिलती है. आदिवासी भाषा को महत्व दिलाने में डा. मिंज के प्रयास बेहद अहम हैं. न केवल पाठ्यक्रम बल्कि झारखंड की संस्कृति को शिक्षा परिसर में अध्ययन अध्यापन का विषय बनाने के उनके ही प्रयास का असर यह हुआ कि रांची विश्वविद्यालय के आदिवासी और क्षेत्रीय भाषा विभाग का जन्म हुआ. बिरसा मुंडा के जीवनीकार आइएएस डॉ. कुमार सुरेश सिंह ने निर्मल मिंज की प्रेरणा से इस विभाग का आधार तैयार किया. उस समय डॉ. सिंह छोटानगपुर के आयुक्त सह रांची विश्वद्यिालय के कुलपति थे.डॉ. रामदयाल मुंडा और वीपी केसरी जैसे बौद्धिकों ने इस विभाग के माध्यम से वर्चस्वादी संस्कृति के समानंतर आदिवासी झारखंडी चेतना को एक बड़ा फलक बना दिया.

डॉ. मिंज कोई मामूली इंसान नहीं थे. जो लोग भी उनके करीब आए उनकी सादगी और शब्दों की सच्चाई से प्रभावित हुए. उनके पास आ कर हर एक ने उन्हें अपने परिवार का बुर्जग या दोस्त की माना. वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिनमें बुद्धिजीवियों वाली चालाकी नहीं थी. वे दूसरों की बात बहुत ध्यान से सुनते थे और जरूरत पड़ने पर अपनी असहमति बेहद विनम्रता के साथ व्यक्त करते थे. आमतौर पर उनके स्तर के विद्धान जिस तरह अपने आसापास एक आभामंडल बना लेते हैं इससे वे बचा करते थे. उनकी यह आदत उन्हें दूसरों से अलग और खास बनाती थी.

उनकी जिंदगी में निराशा के भी अनेक दौर आए लेकिन कभी भी उन्होंने इसका अहसास अपने आसपास के लोगों को नहीं होने दिया. आदिवासी मिथकों से तथ्यात्मक और वैज्ञानिक इतिहास और विचार की तलाश की उनकी भूख निराशाओं को कभी लंबे समय तक मंडराने नहीं दिया. वे ऐसे अद्धितीय आदिवासी बुद्धिजीवी थे जो बिना किसी से प्रतिस्पर्धा और ईष्या के अपने लक्ष्य पर अडिग रहा.

निर्मल मिंज की आवाज दुनिया भर आदिवासी समाजों में सुनी जाती थी. इसका कारण यह था जिस तरह न्गुगी वा थ्योंगे ने अफ्रीकी समाज पर साम्रज्यावदी भाषा और संस्कृति के वर्चस्व को चुनौती दिया ठीक उसी तरह निर्मल मिंज के शोधा प्रपत्र झारखंड के आदिवासियों की भाषाओं और संस्कृति को अभिजन वर्चस्व से मुक्ति की छटपाहट का अहसास और विचार प्रदान करता है. जिस तरह इटली के अंतोनियो ग्राम्शी ने अपने देश ओर समाज के उत्पीड़ित समाजों को वर्चस्ववाद के खिलाफ संघर्ष करने की प्रेरणा दिया निर्मल मिंज भी वैसे ही एक मौलिक विचारक थे. निर्मल मिंज किसी पार्टी विशेष के सदस्य के रूप में सक्रिय नहीं थे लेकिन उनके लेखन में एक ऐसी राजनीतिक वैचरिकता है जो झारखंड ही नहीं पूरे आदिवासी समाजों के लिए एकजुट होने का आधार बनाता है.

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