क्या आपको पता है, क्यों मनाते हैं होली, जानें इसके पीछे की प्रचलित पौराणिक कथाएं
Lagatar Desk : होली रंगों का त्योहार है, जो भाईचारे, आपसी प्रेम और सद्भावना का प्रतीक है. इस दिन लोग एक-दूसरे को रंगों में रंगकर खुशियां मनाते हैं. घरों में तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान और मिठाइयां बनती हैं. वहीं होली की शाम को, लोग एक-दूसरे के घर जाकर गुलाल लगाते हैं और होली की शुभकामनाएं देते हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद कर होलिका दहन किया जाता है. वहीं इसके अगले दिन होली मनायी जाती है.
इस साल पूर्णिमा तिथि 13 मार्च को सुबह 10:35 मिनट से लेकर 14 मार्च को दोपहर 11:11 मिनट तक रहेगी. इसलिए इस बार होली 14 मार्च को नहीं, बल्कि 15 मार्च को मनाई जायेगी. हालांकि, कुछ लोग 14 मार्च को भी होली का पर्व मनायेंगे.
प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी थी होलिका
ऐसे तो होली को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. लेकिन भक्त प्रह्लाद और राक्षस हिरण्यकश्यप की कहानी सबसे प्रसिद्ध है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में अत्याचारी हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान प्राप्त किया था, उसने ब्रह्मा से वरदान में मांगा था कि उसे संसार का कोई भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे मार सकेगा. वरदान पाते ही हिरण्यकश्यप निरंकुश हो गया. उसने अपने अलावा किसी और की पूजा करने की मनाही कर दी.
लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद नहीं माना. क्योंकि वह भगवान विष्णु का परम भक्त था. इससे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद यानी अपने बेटे को जान से मारने का प्रण लिया. उसने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार प्रह्लाद भगवान की कृपा से बच गया. अंतत हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने के लिए कहा.
होलिका के पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती. होलिका प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी. प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा से होलिका खुद आग में जल गयी. लेकिन प्रह्लाद को एक खरोच तक नहीं आयी. इसके बाद से ही होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाने लगा.
श्रीकृष्ण ने सबसे पहले राधा के साथ खेला था रंग
ब्रज की होली पूरे देश में प्रसिद्ध है. नंद की नगरी में इसे बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस पर्व की शुरुआत श्रीकृष्ण और राधा रानी की अठखेलियों से हुई, जो एक पौराणिक कथा के अनुसार वर्णित है.
कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण का रंग सांवला था, जबकि राधा रानी गोरी थीं. श्रीकृष्ण इस बात को लेकर अक्सर मां यशोदा से शिकायत किया करते थे कि वे सांवले क्यों हैं. इस पर यशोदा मैया ने उन्हें सुझाव दिया कि वह अपने जैसा रंग राधा के चेहरे पर लगा दें, ताकि दोनों एक जैसे दिखें.
खुश होकर श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ राधा को रंग लगाने के लिए निकल पड़े. माना जाता है कि श्रीकृष्ण और उनके मित्रों ने राधा और गोपियों के साथ जमकर रंग खेला. इस आनंदमय क्षण के बाद से होली मनाने का चलन शुरू हुआ और हर साल इस त्यौहार को उत्साह और प्रेम के साथ मनाया जाने लगा. इस प्रकार, श्रीकृष्ण और राधा की होली ने रंगों के इस पर्व को एक विशेष पहचान दी.
इसी दिन गांव वालों ने असुर स्त्री से पाया था छुटकारा
होली से जुड़ी एक और कथा है, जो श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी. इस कथा के अनुसार, एक गांव में एक असुर स्त्री रहती थी, जो गांव के लोगों को मारकर खा जाती थी. इससे पूरा गांव परेशान था और छुटकारा पाना चाहता था.
गांव वालों की परेशानी को देखते हुए गुरु वशिष्ठ ने बताया कि इस असुर स्त्री को कैसे समाप्त किया जा सकता है. गुरु की सलाह मानते हुए गांव के बच्चों ने असुर स्त्री की मिट्टी से एक मूर्ति बनाई. इस मूर्ति के चारों तरफ घास, लकड़ियां और कंडे रख दिये और इसे इस तरह रखा गया कि असुर स्त्री को मूर्ति नजर न आये.
गुरु वशिष्ठ ने कहा कि यदि इस मूर्ति की पूजा-अर्चना करके इसे जलाया जायेगा, तो असली असुर स्त्री भी जलकर नष्ट हो जायेगी. ऐसा ही हुआ. जब मूर्ति को जलाया गया, तो असुर स्त्री भी जलकर भस्म हो गयी. इस प्रकार, गांव वालों ने होलिका दहन किया और खुशी से नाचकर होली मनायी, मिठाइयां बांटी और असुर स्त्री से छुटकारा पाया.
पार्वती के लिए कामदेव ने महादेव पर चलाया था पुष्प बाण
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती महादेव (भगवान शिव) से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन महादेव इस विवाह के लिए सहमत नहीं हो रहे थे. माता पार्वती की इस समस्या को देखकर कामदेव ने मदद करने का निर्णय लिया.
जब महादेव अपनी तपस्या में लीन थे, तब कामदेव वहां आये और भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए उन पर पुष्प बाण चला दिया. महादेव ने क्रोध में अपनी आंखें खोलीं और कामदेव अग्नि से भस्म हो गये.
इसके बाद महादेव की दृष्टि माता पार्वती पर पड़ी और उन्होंने विवाह के लिए सहमति दे दी. माना जाता है कि महादेव ने कामदेव को एक बार फिर जीवित कर दिया. इस घटना के बाद से ही होली का त्यौहार मनाया जाने लगा, जो प्रेम और समर्पण का प्रतीक बन गया.